ईपीसीएच के उपाध्यक्ष सागर मेहता के नेतृत्व में हस्तशिल्प निर्यातकों का एक प्रतिनिधिमंडल ने सांसद इमरान मसूद से मुलाकात की


ईपीसीएच ने भारतीय लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यात की सुरक्षा के लिए यूरोपीय संघ के वनों की कटाई के नियमों (ईयूडीआर) पर सरकार से हस्तक्षेप की मांग की


दिल्ली/एनसीआर (अमन इंडिया ) । ईपीसीएच के उपाध्यक्ष  सागर मेहता के नेतृत्व में हस्तशिल्प निर्यातकों का एक प्रतिनिधिमंडल ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के सांसद इमरान मसूद से मुलाकात की। इस बैठक में ईपीसीएच के सीओए सदस्य एवं सहारनपुर वुड कार्विंग मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के महासचिव  मोहम्मद औसाफ; सहारनपुर वुड कार्विंग मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के अध्यक्ष इरफान उल हक; सहारनपुर वुड कार्विंग मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष  परविंदर सिंह; ईपीसीएच के अतिरिक्त कार्यकारी निदेशक  राजेश रावत; प्रमुख सदस्य निर्यातक श्री अनवर अहमद,  मोहम्मद शाम जमा,  मोहित चोपड़ा,  मोहम्मद असद काशिफ भी मौजूद थे। ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक  आर. के. वर्मा ने बताया कि बैठक का उद्देश्य भारत सरकार से यूरोपीय संघ वनों की कटाई के नियमों (ईयूडीआर) के अनुपालन में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करना था और माननीय सांसद ने धैर्यपूर्वक पूरे मुद्दे को सुनने के बाद अपने पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया।


ईपीसीएच अध्यक्ष डॉ. नीरज खन्ना ने कहा, "हालांकि हम यूरोपीय संघ की वनों की कटाई को रोकने की कोशिशों की सराहना करते हैं, पर ईयूडीआर अनुपालन की आवश्यकताएं हमारे लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। हमारे लकड़ी से बने हस्तशिल्प मुख्य रूप से आम, बबूल और शीशम की लकड़ियों से बनते हैं, जो ज्यादातर कृषि वानिकी (खेतों के पास उगाए गए पेड़ों) से प्राप्त होते हैं। ये पेड़ प्राकृतिक जंगलों के बाहर उगाए जातें हैं जो वनों की कटाई के तहत नहीं आते हैं।


उन्होंने इसके बाद कहा, "हमारा मानना है कि अगर ये सख्त अनुपालन हमारे देश की स्थिति को ध्यान में रखे बगैर लागू किए गए, तो बहुत बड़ा व्यवधान पैदा हो सकता है। इससे बहुत से कारीगर और एमएसएमई निर्यातक यूरोपीय संघ के बाजारों में अपनी जगह गंवा सकते हैं, इससे उत्पादन में गिरावट, ऑर्डर रद्द होने और कारीगरों और उनके आश्रितों के बीच बड़ी संख्या में बेरोजगारी आ सकती है।"


ईपीसीएच के उपाध्यक्ष  सागर मेहता ने कहा कि "हस्तशिल्प क्षेत्र भारत के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लाखों कारीगरों के आय की रीढ़ है। भले ही हमारी लकड़ी टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से प्राप्त की जाती है, इसके बावजूद ईयूडीआर भारत जैसे देशों की खास परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए सभी लकड़ी निर्यातकों पर एक जैसे नियम लागू करता है। अगर सरकार ने समय पर हस्तक्षेप नहीं किया, तो इन नियमों का पालन करना हमारे निर्यातकों के लिए बहुत जटिल हो सकता है। लिहाजा हमें एक सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है जो  नियामक समर्थन और यूरोपीय संघ से बातचीत को एक साथ लाए। 


उन्होंने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से आम, बबूल और शीशम लकड़ी के लिए छूट हासिल करने के लिए यूरोपीय संघ के साथ बातचीत करने और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और कृषि एवं वन किसान कल्याण मंत्रालय से अनुरोध किया कि वे अपने अधिकारियों को निर्देश दें कि लकड़ी की कटाई के समय उसकी भू-स्थान यानी जियो लोकेशन की जानकारी दी जाए, ताकि संबंधित डेटा से निर्यातकों को यह साबित करने में मदद मिल सके कि उनकी आपूर्ति वनों की कटाई से मुक्त है।


ईपीसीएच के सीओए सदस्य मोहम्मद औसाफ ने कहा कि "यूरोपीय संघ के वनों की कटाई संबंधी नियम लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों, खास कर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और कारीगर-आधारित उद्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करते हैं। हालांकि हम स्थायी और जिम्मेदार बिजनेस का पूर्ण समर्थन करते हैं,  लेकिन यह समझना जरूरी है कि हमारा लकड़ी हस्तशिल्प क्षेत्र अपनी खास प्रकृति रखता है — यह कृषि वानिकी पर आधारित है और वनों की कटाई में कोई भूमिका नहीं निभाता। इसलिए हम एक व्यावहारिक अनुपालन ढांचा विकसित करने के लिए सरकारी निकायों, उद्योग के स्टेकहोल्डर्स को शामिल करते हुए एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण का अनुरोध करते हैं जो वैश्विक दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरा करते हुए हमारे कारीगरों की सुरक्षा करे।

ईपीसीएच के अपर कार्यकारी निदेशक राजेश रावत ने कहा, “ईपीसीएच हमेशा  वैश्विक सस्टेनेबिलिटी मानकों के अनुरूप काम करता रहा है, जैसे कि ‘वृक्ष’ (टिम्बर लीगैलिटी असेसमेंट ऐंड वेरिफिकेशन स्कीम) योजना, जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रणाली है जो लकड़ी की सोर्सिंग की वैधता और सस्टेनेबल स्रोत से प्राप्त होने की पुष्टि करती है। हालांकि जियो रेफरेंस पर आधारित ट्रैसेबिलिटी सिस्टम (यानी नक्शे पर कॉऑर्डिनेट्स को दर्शाने वाली डिजिटल इमेज) को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए नीति बनाकर समर्थन करने, फंडिंग और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है। यही सामूहिक दृष्टिकोण भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को सुरक्षित रखते हुए अनुपालनों को सुनिश्चित करेगा।

ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक  आर. के. वर्मा ने बताया कि हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद देश से हस्तशिल्प के निर्यात को बढ़ावा देने और देश के विभिन्न हस्तशिल्प क्लस्टर्स में काम कर रहे लाखों कारीगरों के जादुई हाथों से बने उत्पादों – जैसे होम डेकोर, लाइफस्टाइल, टेक्सटाइल, फर्नीचर, फैशन जूलरी एवं एक्सेसरीज़ को वैश्विक ब्रांड बनाने की दिशा में कार्य करने वाली एक नोडल संस्थान है। वर्ष 2024-25 के दौरान हस्तशिल्प का कुल निर्यात ₹33,123 करोड़ (3,918 मिलियन अमेरिकी डॉलर) रहा, जबकि लकड़ी हस्तशिल्प का निर्यात ₹8,524.74 करोड़ (1,008.04 मिलियन अमेरिकी डॉलर) रहा, यहां रुपये के संदर्भ में 6% और डॉलर के संदर्भ में इसमें 3.84% की है ।