- अस्पताल के सुपर स्पेशलिस्ट न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टरों ने जांच के बाद इलाज कर बचाई जान
- इलाज में देरी से जा सकती थी बुजुर्ग की जान, ब्रेन स्ट्रोक के मरीज के लिए साढ़े चार घंटे अहम
नोएडा (अमन इंडिया ) । गर्मी में शरीर में पानी की कमी के साथ ब्लड प्रेशर होने से मरीज ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हो रहे हैं। फेलिक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने ब्रेन स्ट्रोक का शिकार एक बुजुर्ग मरीज समय पर जांच के बाद इलाज शुरू कर जान बचाने में कामयाबी पाई है।
फेलिक्स अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौम्या मित्तल का कहना है कि 65 वर्षीय मरीज को करीब दस दिन पहले ब्रेन स्ट्रोक का शिकार होने पर इलाज के लिए अस्पताल लाया गया था। मरीज को बोलने के साथ चलने फरने में दिक्कत थी। समय पर जांच के बाद नई दवाओं के जरिये मरीजों को स्टेबल करने में कामयाबी पाई है। समय पर सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल पहुंचने पर मरीज की जान बची है। देखा जा रहा है कि अचानक बढ़ी तेज गर्मी ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की संख्या बढ़ी है। तेज गर्मी के कारण समझने और बोलने और चलने में परेशानी होती है। रोजाना चलते समय शरीर का संतुलन नहीं बना पाने वाले लक्षणों वाले मरीज आ रहे हैं। कई मरीज को भर्ती तक करना पड़ रहा है। 45 डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर पानी की कमी हो जाती है। इससे दिमाग तक जाने वाली खून की सप्लाई कम हो जाती है। खून गाढ़ा होकर नसों में जम जाता है। इस कारण ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण नजर आते हैं। शुगर, बीपी और सीओपीडी के मरीजों में गर्मी के कारण ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ब्लड प्रेशर बढ़ने से ब्रेन में मौजूद नसों पर ज्यादा प्रेशर पड़ता है। उनसे ब्लीडिंग हो जाती है। ब्रेन की नसों में क्लॉट बनने शुरू हो जाते हैं। ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए हाई बीपी और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने की जरूरत है। वजन को लंबाई के अनुसार मेंटेन करने से काफी हद तक इस बचा जा सकता है। सिरदर्द, धुंधला दिखाई देना इसके शुरूआती लक्षण हैं। इन्हें समय पर डॉक्टर की सलाह से दूर किया जा सकता है। इसके अलावा हीट स्ट्रोक से दिमाग और नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है। जब शरीर अपने आप को ठंडा रखने में नाकाम हो जाता है। तब शरीर में पानी की कमी हो जाती है। शरीर के सभी अंगों के सही तरीके से संचालन में सोडियम, पोटेशियम जैसे मिनरल का होना जरूरी है। यह रक्त व शरीर के अंगों में मौजूद रहते हैं। इनकी पर्याप्त मात्रा अंगों को सुरक्षित रखती है। इलेक्ट्रोलाइट तंत्रिका और मांसपेशी के काम पर नियंत्रण, शरीर में पानी की मात्रा और शरीर के पीएच स्तर को मेंटेन करते है। इलेक्ट्रोलाइट असंतुलित होने पर मांसपेशियों में ऐंठन शुरू हो जाती है। अगर बात करते समय अचानक मुंह डेढ़ा हो जाए, बोलने में कठिनाई हो, हाथ न उठे, संतुलन बिगड़ जाए तो सावधान हो जाए। यह ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है। ऐसे लक्षण दिखने पर बी-फास्ट का पालन करते हुए मरीज को तुरंत अस्पताल लाना चाहिए। अगर चार घंटे के अंदर मरीज को उपचार मिल जाता है तो लकवा होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों में बढ़े तनाव के कारण रक्तचाप प्रभावित हुआ है। जिसने ब्रेन स्ट्रोक की संभावनाओं को बढ़ाया है। ब्रेन स्ट्रोक आने की कम से कम आयु में लगातार गिरावट होती जा रही है। जागरूकता बढ़ाने से ऐसे मरीजों को बचाना आसान होगा। इसलिए सभी को बी-फास्ट की जानकारी होनी चाहिए। इसमें बी का मतलब बैलेंस से हैं। अगर कभी ऐसा महसूस हो कि शहरी का संतुलन बिगड़ रहा है। चलते चलते पैर रुकने लगें या एक दम से चला न जा सके तो यह ब्रेन स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है। एफ का मतलब फेस से हैं। अगर चेहरे की आकृति बिगड़ना। चेहरा टेढ़ा हो जाए या महसूस होने लगे तो भी इसे हल्के में न लें। ए का मतलब आर्म से हैं। इसमें हाथ मुड़ने लगे या पैरों में टेढ़ापन महसूस होना है। एस का मतलब स्पीच से हैं। अगर मरीज को बोलने में परेशानी हो या तुतलाहट होने लगे। अचानक कुछ बोल न पाना तो सतर्क हो जाए। टी का मतलब है टाइम टू कॉल है। ऐसे कोई भी लक्षण दिखने लगें तो तुरंत ऐसे हॉस्पिटल में पहुंचे। जहां सीटी स्कैन, एमआरआई के साथ स्पेशलिस्ट डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध हो। दिमाग का दौरा उस समय पड़ता है, जब दिमाग की किसी नाड़ी में खून का थक्का (कलॉट) आने या नाड़ी फटने के कारण दिमाग को रक्त की सप्लाई कम हो जाती है। ब्रेन बहुत नाजुक होता है इसमें पल पल की अहमियत है। एक मिनट में ब्रेन के लाखों सेल्स टूट जाते हैं। जितनी देरी बढ़ती जाएगी उतना नुकसान हो चुका होगा। कई बार स्ट्रोक इतना गंभीर होता है कि यह हमेशा के लिए पेशेंट को बेड पर ला देता है। ब्रेन के सेल्स को बनने में लंबा समय लग जाता है। पूरी जिदगी दवाई खानी होती है। देरी से पहुंचने पर ही पैर के रास्ते ब्रेन में सर्जरी कर क्लॉट हटाने जैसी नौबत आती है। ब्रेन स्ट्रोक का शिकार मरीज के लिए साढ़े चार घंटे बेहद कीमती होते हैं। पहले साढ़े चार घंटे में अगर मरीज आ जाता है तो उसे एक इंजेक्शन देकर ब्रेन स्ट्रोक से मस्तिष्क में सेल्स को हो रहे नुकसान को रोका जा सकता है। लक्षण आने पर सुबह जाएंगे कल चलते हैं जैसी स्थिति सबसे खतरनाक है। नई तकनीक आने से 24 घंटे के अंदर मरीज का इलाज किया जा सकता है। नई तकनीक से बिना चीरफाड़ किए सफल इलाज संभव है।
ब्रेन स्ट्रोक से इन्हें है ज्यादा खतरा
● मोटापा का शिकार लोगों को
● अनियंत्रित मधुमेह का शिकार लोगों को
● अनियंत्रित रक्तचाप का शिकार लोगों को
● खर्राटा लेने वाले लोगों को
● अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल व लिपिड का शिकार लोगों को
● खराब लाइफ स्टाइल वाले लोगों को
● धूम्रपान व शराब का सेवन करने वाले लोगों को