समय पर पहचान से रेयर डिजीज का इलाज संभव, फैमिली हिस्ट्री पर करवाते रहें स्क्रीनिंग
फेलिक्स अस्पताल के डॉक्टर्स ने किया जागरूक
नोएडा (अमन इंडिया ) ।
अगर किसी की फैमिली में रेयर डिजीज है तो उस परिवार में जन्म लेने वाले सभी बच्चों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए। बच्चों में कोई शारीरिक और मानसिक बदलाव दिख रहे हैं तो भी डॉक्टर को दिखाएं जैसे अंगों का पूर्ण विकसित न होना, सिर बड़ा होना, हड्डियों का कमजोर होना, सांस लेने में दिक्कत, बच्चों में मोतियाबिंद या दौरे आदि की समस्या है तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं।
फेलिक्स हॉस्पिटल ने रेयर डिजीज डे पर डॉक्टर टॉक आयोजित कर जनता को जागरूक किया , अस्पताल की जनरल फिजिशियन डॉ अंशुमाला ने बताया कि रेयर डिजीज मरीज के पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं। इनका दुष्प्रभावशारीरिक-मानसिक भी हो सकता है। ये रोग मरीज को अशक्त बना सकते, धीरे-धीरे उनकी क्षमता खत्म कर सकते हैं यहां तक कि कई बार जानलेवा भी हो जाते हैं। चूंकि रेयर डिजीज के लिए बहुत कम या नाम मात्र का इलाज या उपाय है, इसलिए इसके रोगियों की पीड़ा और बढ़ जाती है। बच्चों के जन्म के साथ एक जांच होती है, जिसे डीबीएस यानी ड्राय ब्लड स्पॉट टेस्ट कहते है। इसकी मदद से कुछ रेयर बीमारियों की जांच संभव है। इसके साथ ही बच्चों की शारीरिक और मानसिक विकास को भी मॉनीटर करते रहें। लक्षणों से भी जल्दी पहचान हो सकती है। केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2021 में रेयर डिजीज पॉलिसी की घोषणा हुई थी, जिसे 2022 में रिवाइज किया गया था। इनमें तीन श्रेणियां बनाई गई थीं। ऐसी दुर्लभ बीमारियां जिसमें एक बार के इलाज में बीमारी ठीक हो जाती, दूसरा जिसका इलाज लंबा चलता है लेकिन खर्च कम आता है और तीसरा जिसमें इलाज लंबा चलता और खर्च भी अधिक आता है। तीसरी श्रेणी की बीमारियों में जीनथैरेपी, स्टेम सेल्स थैरेपी देनी पड़ती है। करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। केंद्र सरकार की ओर से पहले दो श्रेणी के मरीजों को आर्थिक मदद दी जा रही है जबकि तीसरी श्रेणी के मरीजों के लिए क्राउड फंडिंग की बात कही गई है। केंद्र सरकार की ओर से हर राज्य में इसके मरीजों के लिए अलग-अलग अस्पतालों को नोडल सेंर्ट्स बनाए गए हैं। लक्षणों की अनदेखी न करें दुर्लभ बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए 28 फरवरी को दुुर्लभ बीमारी जागरूकता दिवस मनाया जाता है दुर्लभ बीमारी (रेयर डिजीज) के लिए कोई स्थाई गाइड लाइन नहीं है।
अमरीका में अगर कोई बीमारी 1500 लोगों में एक को है तो दुर्लभ बीमारी की श्रेणी में आती है जबकि भारत में 2500 में से एक को है तो इस श्रेणी में है। दुनिया की कुल आबादी की बात करें तो 6-7 फीसदी लोगों को रेयर डिजीज है। भारत में यह आंकड़ा करीब 7 करोड़ के आसपास है। ऐसा देखा गया है कि 80 फीसदी रेयर डिजीज जीन में खराबी के कारण होती हैं। वहीं कुछ मामलों में बैक्टीरिया, वायरस, इंफेक्शन, एलर्जी आदि भी कारण हो सकते हैं। सिस्टिक फाइब्रोसिस, जो श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। हटिंगटंस डिजीज, जो ब्रेन और नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है। मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी जो मांसपेशियों को प्रभावित करते हैं। इसके इलाज में 16-17 करोड़ रुपए तक खर्च हो जाते हैं। एक दुर्लभ स्थिति वाले रोगी का निदान करना अक्सर एक कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है। बड़ी संख्या में असामान्य बीमारियां हैं, और उनमें से कुछ, हीमोफिलिया, हंटिंग्टन रोग और सिस्टिक फाइब्रोसिस सहित काफी प्रसिद्ध हैं, हालांकि कई अन्य नहीं हैं। इस वजह से, चिकित्सा पेशेवरों को रोगी के लक्षणों के पीछे का कारण निर्धारित करने में कठिनाई हो सकती है। नतीजतन, कई रोगियों को उनकी बीमारी का सटीक निदान किए जाने से पहले बोलचाल की भाषा में डायग्नोस्टिक ओडिसी के रूप में जाना जाता है। जीन थेरेपी और जीन को संशोधित करने के लिए उपकरण के दो दृष्टिकोण हैं जिनकी वर्तमान में शोधकर्ताओं द्वारा आनुवंशिक बीमारियों के संभावित उपचार के रूप में जांच की जा रही है।