फोर्टिस एस्कॉॉर्ट्स हार्ट इंस्टीटट्यूट के डॉक्टरों ने 51 वर्षीय एक महिला रोगी का हार्ट फेल होने के बाद सफल उपचार किया

 टीबी की बीमारी से पीड़ति 51 वर्षीय महिला की डॉक्टरों ने बचाई जान

नई दिल्ली (अमन इंडिया)। फोर्टिस एस्कॉॉर्ट्स हार्ट इंस्टीटट्यूट के डॉक्टरों ने 51 वर्षीय एक महिला रोगी का हार्ट फेल होने के बाद सफल उपचार किया। रोगी टीबी की शिकार थी, जिसकी वजह से उसका हार्ट फेल हुआ था। ऐसे में, दोनों गंभीर चुनौतियों से एक साथ जूझना और मरीज की हालत स्थिर बनाए रखना काफी जोखिम भरा था। तब डॉक्टरों ने मरीज के शरीर में आईसीडी प्रत्यानरोपित किया जो कि एक तरह का पेसमेकर है। 

फोर्टिस एस्कॉॉर्ट्स हार्ट इंस्टीटट्यूट के डा विवुध प्रताप सिंह ने बताया कि मरीज को अस्पताल की इमरजेंसी में तब लाया गया था जब उन्हें सांस लेने में काफी कठिनाई हो रही थी और पूरे शरीर में सूजन थी। प्रारंभिक क्लीयनिकल जांच से पता चला कि उनके हृदय के आसपास काफी मात्रा में तरल पदार्थ जमा हो गया है जिसकी वजह से हार्ट ठीक से पंप नहीं कर पा रहा था। इसके कारण ब्ल ड प्रेशर में गिरावट आ गयी थी। मरीज की बिगड़ती हालत को देख उन्हें दवाओं पर रखा गया ताकि ब्ल्ड प्रेशर को नियंत्रित किया जा सके। साथ ही, यह भी जरूरी था कि उनके हार्ट की पंपिंग क्षमता में भी सुधार किया जाए जो तभी संभव था जबकि हार्ट के इर्द-गिर्द जमा हुए फ्लूड को हटाया जाता। शुरू में, मरीज को एंटी-ट्यूबरकुलर थेरेपी दी गई और उनकी जांच रिपोर्टों से यह पुष्टि हुई कि वे टीबी की मरीज थीं। डॉ विवुध प्रताप सिंह ने बताया कि हमारी टीम के लिए यह मामला काफी जटिल था। एंटी-ट्यूबरकुलर थेरेपी के दौरान, एक नई चुनौती भी खड़ी हो गई थी क्योंंिक मरीज की हृदय गति बार-बार तेज (वेंट्रिक्युुलर टैकीएरिथीमिया) हो रही थी। उन्हें एक हफ्ते में पहले ही चार बार कार्डियाक अरेस्टा भी हो चुके थे। मरीज को रिवाइव करने के लिए उन्हें कार्डियाक मसाज और शॉक्सर दिए गए तथा बिना किसी वेंटिलेटर सपोर्ट के उन्हें पुनर्जीवित किया गया। मरीज के रिश्तेशदारों के साथ बातचीत के बाद मरीज के शरीर में आईसीडी (एक खास तरह का पेसमेकर जो तेज हृदय गति होने पर शॉक देता है) लगाया गया। 

जोनल डायरेक्टसर बिदेश चंद्र पॉल ने बताया कि फोर्टिस एस्कॉार्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट की टीम ने मरीज की जीवनरक्षा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। मरीज की पूरी जांच, समुचित निगरानी और चिकित्सकीय देखभाल के बाद टीम ने यह सुनिश्चित किया कि उनकी हालत और न बिगड़े और यह भी कि मरीज की स्थिति में सुधार हो। यह काफी चुनौतीपूर्ण मामला था और चिकित्सकीय दृष्टि से जोखिमपूर्ण भी था, लेकिन हमारे डॉक्टरों ने मरीज की जान बचाने के लिए पूरी जान लगा दी।