अफगान संकट में मित्र राष्ट्रों को सुझ बुझ के साथजुटता परिचय देना होगा - खबरी लाल



दिल्ली (अमन इंडिया)। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के जानकारो का मानना है कि राजनीतिक मान चित्र मे एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अफगानिस्तान संकट की इस घडी मे मित्र राष्टो को सुझ - बुझ व समझदारी के साथ एकजुटता का परिचय देते हुए अफ़ग़ानिस्तानी लोगों के साथ खड़े हो कर तालिबान के दमनकारी नीति के विरोध सैनिक व सामर्रिक रणनीति तैयार करना चाहिए।जैसा कि आप को मालूम है कि साम्राज्यवादी हस्तक्षेप और तालिबान तानाशाही के खिलाफ 

 बीस साल पुराने अमेरिकी कब्जे के अंत से अफगानिस्तान के लोगों को कोई राहत नहीं मिली है। इन दिनो तालिबान ने बन्दुक गोली . बारूद ' तोप मिसाईल के बल पर अधिग्रहण ने अराजकता, संकट, अनिश्चितता और भय की विकट स्थिति पैदा कर दी है। पिछली बार जब तालिबान सत्ता में था, उसने आतंक, मनमाने और क्रूर फरमानों और दंडों का शासन शुरू किया था, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का पूर्ण नुकसान किया था। इस तरह के हश्र से बचने के लिए बेताब और अपनी स्वतंत्रता, अधिकारों और जीवन के लिए भयभीत, हजारों अफगान लोग देश से भाग रहे हैं।अफ़ग़ानिस्तान के अंदर से हर दिन तालिबानी के नए अत्याचारों की खबरें आती रहती हैं। तालिबान ने हज़ारों अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का कत्लेआम किया है, एक डॉयचे वेले पत्रकार के परिजनों को मार डालने की अफवाह भी आई है, एक महिला टीवी एंकर को एक पुरुष द्वारा प्रतिस्थापित करने के लिए मजबूर किया है! घर घर जाकर प्रतिरोधियों का अपहरण कर रहा है ।पत्रकारों पर हिंसक रूप से हमला कर रहा है, कम से कम एक की हत्या कर चुका है, और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों को गोली मार दी है। तालिबान ने घोषणा की है कि वह तय करेंगे कि महिलाएं कितना पढ़ सकती हैं, वे किन विषयों का अध्ययन कर सकती हैं, वे कौन सी नौकरी कर सकती हैं; और उन्हें क्या पहनना चाहिए। महिलाओं पर तालिबान के हमले की खबरें पहले ही आ रही हैं। अदभुत साहस का परिचय देते हुए काबुल की सड़कों पर हाथ से बने पोस्टरों के साथ महिलाएं धरना दे रही हैं; और पूरे देश में अफगान पुरुष और महिलाएं हाथों में अफगान झंडे लेकर तालिबान केअधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं, इस प्रक्रिया में तालिबान की गोलियों का सामना कर रहे हैं। अफगानिस्तान के ये लड़ रहे लोकतांत्रिक लोग हैं जिनके प्रति हमें एकजुटता बढ़ाने और उनकी आवाज बुलंद करने की जरूरत है।दुनिया की कई ताक़तें आज अफगानिस्तान के दुखद हालातों के लिए जिम्मेदार हैं। 1979 में तत्कालीन अफगान सरकार के कहने पर सोवियत सैन्य हस्तक्षेप ने अफगानिस्तान को सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच शीत युद्ध की प्रतियोगिता का मैदान बना दिया। सोवियत समर्थित सेना के खिलाफ मुजाहिदीन बलों का समर्थन करने के लिए अमेरिका ने धन और हथियार डाले। इसी पृष्ठभूमि में तालिबान उभर कर आया । 2001 में, अफगानिस्तान के लोगों और विशेष रूप से इसकी महिलाओं को तालिबान शासन से मुक्त करने और "आतंकवाद पर युद्ध" के नाम पर, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने फिर से अफगानिस्तान पर एक सैन्य आक्रमण और क़ब्ज़ा किया।

हाल की घटनाओं ने आक्रमण और कब्जे के सभी बहानों का पर्दाफ़ास कर दिया है । अमेरिकी कब्जे के दौरान , उसकी सेना और उनके भाड़े के सैनिकों द्वारा अफगान लोग लगातार बमबारी, ड्रोन हमलों , मनमाने छापे और हत्याओं को झेलते रहे । वास्तव में अमेरिकी क़ब्ज़ा तालिबान के लिए काफ़ी मददगार साबित हुआ । यहाँ तक कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से बाहर निकलने का फैसला करते हुए, सिर्फ़ तालिबान के साथ ही वार्ता की स्थापना की, जिसमें उसके सहयोगियों के साथ-साथ अफगान सरकार को भी शामिल नहीं किया गया था। इसकी परिणति यूएस-तालिबान समझौते में हुई, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका तालिबान को सत्ता हस्तांतरित कर रहा था। "आतंक के खिलाफ युद्ध", "लोकतंत्र के लिए युद्ध" और "अफगान महिलाओं की रक्षा के लिए युद्ध" के मुखौटे उतर चुके हैं, और यह साफ़ हो गया है कि यह कब्जा अफगानिस्तान को वश में करने और अमेरिकी हितों की सेवा में एक हिंसक साम्राज्यवादी अभ्यास ही था आज अफगानिस्तान के नागरिकों - विशेष रूप से नारीवादियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य कर्मियों, कल्याण क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की स्वतंत्रता और जीवन तालिबान से खतरे में हैं। तालिबान से बच के भागने के लिए शरणार्थी जिस हद तक अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं, उससे पता चल रहा है कि तालिबान शासन का आम नागरिकों के लिए क्या नारकीय मायने हैं. काबुल छोड़ने वाली हवाई जहाज़ के पंखों पर लटके शरणार्थियों में से दो लोग - एक 20 वर्षीय फुटबॉल खिलाड़ी और एक 25 वर्षीय डॉक्टर - की जान चली गई। शरणार्थी जिन देशों में शरण मांग रहे हैं वहाँ उदासीनता, शत्रुता और हिंसा का सामना कर रहे हैं - यह अतिरिक्त शर्म की बात है । तालिबान पर भारत सरकार ने अभी तक अपना स्पष्ट नहीं किया है। ब्लकि भारत सरकार बेट एण्ड वॉच के तहत भारतीय नागरिको को सुरक्षित भारत लाने मे लगी है

इस बीच सत्तारूढ़ भाजपा और हिंदू-वर्चस्ववादी आरएसएस के नेताओं ने भारत के मुसलमानों के खिलाफ एक नफरत भरा अभियान शुरू किया है । सभी मुसलमानों और ख़ुद इस्लाम की तुलना प्रतिगामी और दमनकारी तालिबान के साथ किया है। सरकार ने शर्मनाक तरीके से सी ए ए का भी उल्लेख किया है जो भारतीय संविधान के समान नागरिकता के आश्वासन के खिलाफ जाता है, और घोषणा की है कि यह अफगानिस्तान से हिंदू और सिख शरणार्थियों को "प्राथमिकता" देगा। शरणार्थियों में धर्म के आधार पर इस तरह फ़र्क़ करना बेहद शर्मनाक है. 

भारत में भाजपा-आर एस एस देश के नागरिकों पर हुकुम थोपता है - कि हम क्या खा सकते हैं, सोच सकते हैं, लिख सकते हैं, गा सकते हैं और बोल सकते हैं और किस से हम प्यार कर सकते हैं. इन हुकुमों का पालन न करने पर हिंसक हिंदू वर्चस्ववादी भीड़ आक्रमण करते हैं और हत्या भी. भाजपा आर एस एस के इस प्रतिगामी और दमनकारी राजनीति के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले हम भारत के लोग, अफगानिस्तान के लोगों के साथ खड़े हैं - तालिबानी दमन और हिंसक हमलों के ख़िलाफ़ उनके स्वतंत्र रूप से जीने, सोचने, बोलने, गाने, लिबास चुनने व अन्य निर्णय लेने के अधिकार के लिए उनके संघर्ष में। हम जो आरएसएस और भाजपा के हमलों के खिलाफ भारत के संविधान और झंडे का बचाव करते हैं ।अफगान लोगों के साथ खड़े हैं जो अपने देश के संविधान और झंडे की रक्षा करते हुए मांग कर रहे हैं कि केवल लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई संसद को कानूनों या राष्ट्रीय प्रतीकों को बदलने की अनुमति दी जाए, और महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बिना किसी भी शर्त या पाबंदी के लागू किया जाए।

तालिबान जहाँ एक तरफ तबाही मचा रखी है विशेष कर महिलाओ पर ' कह केवल खास कर की पोशाक पहने ' घर मे रहे ' खास शिक्षा ग्रहण करे . I इन जालिमो ने विश्व के महाशक्ति अमेरिका को लगातार चुनोती दे रही है कि अमेरिका अपनी सैनिक् को तालिबान 31 अगस्त को बुला ले । बही अपनी अन्तर्राष्ट्रीय छवि सुधारने के लिए अफगानिस्तान की लोगो की सुरक्षा का सुधार कर स्थायी सरकार देगी । लेकिन इस वास्तविक स्थिति आये दिनो अर्न्तराष्ट्रीय समाचार माध्यमो व काबुल हवाई अड्डे पर अफगानिस्तान को छोड़ कर जाने वाले नागरिको की संख्या से स्पष्ट तस्वीरे नजर आ रही है। ऐसी अफगानिस्तान मे तालिबान द्वारा मचाई गई तबाही से उत्पन्न संकट की विकट घड़ी मे विश्व के ताकतवर देशो को विना समय गवाये अफगानिस्तान के लोगो के साथ एक जुटता का परिचय देते हुए तालिबान के जुर्म के आका को करारा ज़वाब देना चाहिए

 यह तो आने वाले वक्त मे अर्न्तराष्ट्रीय संगठन ' लोक तंत्र के समर्थक राष्ट्र व महा शक्तिशाली की सोच व निर्णय पर र्निभर करेगा । पिछले दिनो काबु ल हवाई अड्डे पर सिल सिले वार बम्ब धमाके से 13 अमेरिकी सैनिक व लगभग 90 लोगो को मृत्यु व 250 लोगो की घायल होने की सुचना है तथा अमेरिका कई अन्य राष्ट्रो के द्वारा इस तरह की आशंका जताई गई है ऐसे विश्व के महाशक्ति के रूप अमेरिकी राष्ट्रपति के द्वारा तालिबान के ना केवल खुली चुनौती देना होगा ब्लकि करारा जबाव के रूप मे सैनिक बल का बल इस्तेमाल कर दमनकारी नीति को कुचल ना होगा ।

फिलहाल आप से हम यह कहते हुए विदा लेते है " ना ही काहूँ से दोस्ती , ना ही काहूँ से बैर ।

खबरी लाल तो मांगे सबकी खैर ॥

फिर मिलेगे तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग ।

तब तक के लिए अलविदा ।

प्रस्तुति ।

विनोद तकियावाला 

मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार