नई दिल्ली ( अमन इंंडिया ) । एक भारतीय डॉक्टर ने आम तौर पर गुर्दे की पथरी निकालने की तकनीक से 81 साल के कैंसर सर्वाइवर का अत्यधिक जटिल हृदय उपचार किया है। उन्होंने हार्ट पम्प और ‘लीथोट्रिप्सी’ ’(आम तौर पर सोनिक एनर्जी से गुर्दे की पथरी निकालने की तकनीक) की मदद से दिल और संबद्ध अंग के कठोर जमाव और पथरी के ब्लॉक निकाल दिए।
यह उपचार डॉ. मनोज एस. ने किया जो कावेरी अस्पताल, चेन्नई के सीनियर कंसल्टेंट और इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट हैं। इस गंभीर चिकित्सा और मल्टी-स्पेशिएलिटी अस्पताल में 81 वर्ष के मरीज का यह सफल उपचार किया गया।
उपचार की अभूतपूर्व खूबियां बताते हुए डॉ. मनोज ने कहा, “चिकित्सा साहित्य और पत्रिकाओं के अवलोकन से यह सामने आया है कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया में प्रायः पहली बार ‘डबल हार्ट पम्प’ और ‘रोटाब्लेशन’ की आधुनिक तकनीक के तालमेल के साथ-साथ ‘लीथोट्रिप्सी’ की मदद से मुख्य धमनी से गंभीर ब्लाॅकेज निकाले गए। उपचार प्रभावी और सफल रहा। इसमें दिल के दौरे और हार्ट फेल्यर के मरीज के दायें हाथ की धमनी का पूरा ब्लाॅक निकाल दिया गया।’’
डाॅ. मनोज ने बताया, ‘‘हमें इन सफल उपचारों के प्रति जागरूकता इसलिए पैदा करनी चाहिए ताकि इस देश के लोग यह जानें कि भारत में अत्यधिक जटिल उपचार करने की पूरी सुविधा है और भारतीय चिकित्सक विश्वस्तरीय सक्षमता रखते हैं तथा इस तरह के मरीजों को बचाया जा सकता है।’’
मरीज के हृदय की बायीं मुख्य धमनी 99 प्रतिशत तक ब्लाॅक थी। इसलिए हृदय में रक्त संचार बहुत कम होता था। रक्त के निकल कर शिराओं में पहुंचने में बहुत कठिनाई होती थी। मरीज की हृदय गति रुक जाने से अचानक मृत्यु का अत्यधिक खतरा था और चिकित्सकीय सहायता की तत्काल आवश्यकता थी।
मरीज का हृदय बड़ी तेजी से नाकाम हो रहा था। फेफड़ों में तरल भर रहा था जिससे उसका आॅक्सिजन स्तर कम हो रहा था और हृदय में रक्त बहुत कम पहुंचने के कारण हृदय का वाल्व भी रिसने लगा था।
डॉ. मनोज ने कहा कि मरीज की जटिल एंजियोप्लास्टी के लिए हमें उसकी दाहिनी बांह की धमनी में पहुंचना था जो घने कैल्शियम की वजह से पूरी तरह ब्लाॅक था। पर इस धमनी को मरीज के दाहिने हाथ से खोलने पर स्ट्रोक का जोखिम था क्योंकि यह धमनी मस्तिष्क को खून पहंुचाने वाली धमनी के बहुत करीब थी । मरीज का मस्तिष्क रक्त प्रवाह के लिए 4 में केवल दो धमनियों पर निर्भर था। ऐसी जटिलताओं की वजह से उपचार दो चरणों में करना पड़ा ताकि जोखिम कम हो और मरीज को नया जीवन मिले।