मौत के काले साये मे जीने को मजबुर है मानव - विनोद तकिया वाला

मौत के काले साये मे जीने को मजबुर है मानव - विनोद तकिया वाला


नोएडा।परिवर्तन प्रकृत्ति का अपरिहार्य व शास्वत नियम है ,यह बात सदियो से आज तक जॉच की कसौंटी पर अरक्षण सत्य है, श्रृष्टि ने अपनी सबौत्तम कृति मे मनुष्य को बनाते हु ए मन ,बुद्धि व विवेक से अंलकृति किया ताकि वह प्रकृति में संतलुन बना कर श्रष्टि के विधान का पालन कर सके,लैकिन मानव ने अपनी भौतिक सुख सुविधा व नीजी स्वार्थ सिद्धि हेतु प्रकृति का लगातार दोहन व दुर्पयोग सदियो से करने लगा । परिणाम स्वरूप आज प्राकृतिक प्रकोप के रूप आये दिन वाढ़ ,सुखाग्रस्त महामारी जैसे दंश के रूप काल के गाल मे अकाल मृत्यू मे ग्रास बन रहा है, 


इसका ताजा उदाहरण कोरोना जैसी वैशविक महामारी ने एक तरफ जहाँ लाखो की संख्या जान चली गयी , वही दुसरी तरफ पर्यावरण ,वायु प्रदुशन से मुक्ति ,नदी ,तालब झील ,झरने की स्वच्छता ,नीले आसामान मे कलरव करते हुए पक्षीयों क्रे झुण्ड उन मुक्त विचरण करते मनोरम व विहगम अलैकिक दृश्य आज प्रत्येक मानव को प्रकृति प्रेम के प्रति जागरूकता का संदेश देते हुए एक चेताबनी दी है ,अव भी कुछ नही हुआ अब भी अपनी सोच व जीवन शैली मे अपनी नीजी स्वार्थ को छोड़ प्रकृति से नाता जोड़े, स्वस्थ व सुखी जीवन जीये। अपनी जीवन यापन में सोच को सकारात्मक बनाये ,प्रकृति संतुलन वनाये रखें।


आज के बर्तमान परिपेक्ष मे जब कोरेना महामारी वेशिवक संकट बन कर अपना साम्राज्य स्थापित कर चुका है, जिसके कारण आज मानव जीवन यात्रा मे काल के काले साये मे मौत वी परछाई में जीने को मजबुर है। कोरोना आज सम्पूर्ण षिश्ब के समक्ष विशाल बिषघर नाग अपने फन फलाये हु ए फुपकार मारते हुए मानव मस्तिक मे े भय का आतंक मचाया हुआ है , इस संदर्भ में एक कहानी का सहारा लेना चाहुंगा। जो कोरोना काल मे शतू प्रतिशत सच होती नजर आ २ही है।


इससे पहले मै महशुर संत कबीर जी की वाणी 


मन के हारे हार है ,


मन के जीते जीत है।


जंगल मे एक साँप अपने ज़हर की तारीफ़ कर रहा था कि मेरा डसा पानी भी नहीं माँगता! पास बैठे मेंढक उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि लोग तेरे खौफ से मरते हैं, ज़हर से नहीं....


दोनों की बहस मुकाबले में बदल गई अब यह तय हुआ कि किसी इंसान को साँप छुप कर काटेगा और मेंढक फुदककर सामने आएगा और दूसरा ये कि इंसान को मेंढक काटेगा और साँप फन उठाकर सामने आएगा...


तभी इतने में एक राहगीर आता दिखाई दिया उसको साँप ने छुप के काटा और बीच से मेंढक फुदक के निकला, राहगीर मेंढक देख के ज़ख़्म को खुजाते हुए चला गया ये सोचकर कि मेंढक ही तो है और उसे कुछ नहीं हुआ.....


अब दुसरे राहगीर को मेंढक ने छुप के काटा और साँप फन फैलाकर सामने आ गया वह राहगीर दहशत के मारे जमीन पर गिर गया और उसने वहीं दम तोड़ दिया....


कोरोना के कोहराम मे विष घर की नाग के विष से कम ,नाग के भय से अधिक मृत्यु आज हो २ही है, आयश्यकता है आज कोरोना के संकट काल मे जागरूक्ता ब सर्तकता , साकारात्मकता सोच की , 


प्रत्येक नागरिक का परम र्कतव्य बनता है कि संकट की इस विषम परिस्थिति मे आपसी बैर भाव भुल कर साहस ,धैर्य का परिचय दें कर अद्वश्य शुत्र लडे , कोरोना हारेगा ,भारत जीतेगा।


तभी तो संत कवीर जी ने कहा है कि " मन के , हारे हार है , मन के जीते जीत है


इसी तरह दुनिया में हर रोज़ हज़ारों इंसान मरते हैं, जिनको अलग-अलग बीमारियां होती हैं, कितने तो बगैर बीमारी के ही मर जाते हैं....


अब आप देखिए दूसरी मौत के मुक़ाबले कोरोना से मरने वालों की संख्या बहुत ही कम है, दोस्तों मेहरबानी करके सोशल मीडिया पर दहशत व मायूसी ना फैलाएं....


मौत एक सच है ,हर हाल में आनी है!


लेकिन एहतियात (Precaution)ज़रूरी है! खौफ को खुद से दुर रखें,खौफ और मायूसी से इंसान टूट जाता है! फिर उसका किसी भी बीमारी से लडना आसान नही !


कोरोना से बहुत से लोग ठीक हो चुके हैं और हो भी रहे हैं मौत उसकी आती है जिसके ज़िन्दगी के दिन पूरे हो चुके होते हैं!


 


 खौफ को दिमाग में बिठाकर मौत से पहले अपनी ज़िन्दगी को मौत से बदतर ना करें जीने की चाहत अपने आप में पैदा करेंगे तो कोई मुश्किल कोई परेशानी आपका कुछ नही बिगाड सकती....


सुरक्षित रहें स्वस्थ रहें।


मन के जीते ,जीत है।


मन के हारे , हार है।