फेलिक्स अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. जयदीप गंभीर वजन घटाएँ

 मोटापा केवल शरीर नहीं मस्तिष्क को भी करता है प्रभावित

-हॉर्मोनल असंतुलन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव, बढ़ता है खतरा

नोएडा (अमन इंडिया ) । आज के दौर में मोटापा केवल सौंदर्य या शारीरिक स्वास्थ्य की समस्या नहीं रह गया है। बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार हर साल दुनिया भर में मोटापे के मामलों में वृद्धि हो रही है। लेकिन हालिया शोध ने इस बात की ओर इशारा किया है कि शरीर के साथ-साथ दिमाग की सेहत भी इससे प्रभावित होती है।

फेलिक्स अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. जयदीप गंभीर का कहना है कि  जब शरीर का वजन असंतुलन की ओर बढ़ता है, तब मस्तिष्क पर लगातार दबाव पड़ता है। वजन बढ़ने से आत्मविश्वास की कमी, सामाजिक अलगाव और आत्म-ग्लानि की भावना भी पैदा होती है। यही मानसिक समस्याएं समय के साथ गंभीर रूप ले सकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए केवल मन का नहीं, बल्कि शरीर का भी ख्याल रखना जरूरी है। इसके लिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, नींद और तनाव प्रबंधन बेहद जरूरी हैं। साथ ही यदि व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान है, तो उसे जल्द से जल्द चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए। ऐसे में जरूरी है कि हम मोटापे को केवल सौंदर्य की दृष्टि से न देखें, बल्कि इसे एक व्यापक स्वास्थ्य समस्या के रूप में लेकर जीवनशैली में सुधार करें।  एक शोध में यह पाया कि अत्यधिक वजन और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक गहरा संबंध है। शोध के अनुसार, बढ़ता हुआ वजन न केवल शरीर में सूजन, इंसुलिन रेसिस्टेंस और हॉर्मोनल असंतुलन लाता है। बल्कि यह व्यक्ति को अवसाद (डिप्रेशन), चिंता (एंग्जायटी) और यहां तक कि याद्दाश्त की समस्याओं का भी शिकार बना सकता है। मोटे लोगों में शरीर के अंदर क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन (स्थायी सूजन) बढ़ जाती है। जिससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। सूजन मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के बीच संचार प्रणाली को बाधित कर सकती है और इससे सोचने, निर्णय लेने और याद रखने की क्षमता कमजोर हो सकती है। मोटापे का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू इंसुलिन रेसिस्टेंस है। जब शरीर इंसुलिन को ठीक से उपयोग नहीं कर पाता। तब न केवल टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ता है, बल्कि इससे मस्तिष्क में भी ग्लूकोज की आपूर्ति बाधित हो जाती है। यह स्थिति मानसिक थकान, मूड स्विंग्स और निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है। मोटापा शरीर में हॉर्मोन जैसे कोर्टिसोल और सेरोटोनिन के स्तर को असंतुलित कर सकता है। कोर्टिसोल को स्ट्रेस हॉर्मोन कहा जाता है और इसकी अधिकता व्यक्ति को चिड़चिड़ा और तनावग्रस्त बना सकती है। वहीं सेरोटोनिन का स्तर गिरने से अवसाद और नींद की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि मोटे लोगों में मानसिक रोगों की संभावना दुगुनी हो जाती है। हालांकि जिन लोगों में अवसाद के लक्षण हैं। वहीं जिन्होंने संतुलित आहार और नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं उनमें मानसिक स्थिति बेहतर होती है। 

मोटापे के लक्षणः

वजन का लगातार बढ़ना

कमर और पेट के आसपास चर्बी का जमाव

थकान और कमजोरी

सांस फूलना

जोड़ों में दर्द

अत्यधिक पसीना आना

नींद में समस्या (स्लीप एपनिया)



इन बातों का रखें ध्यानः


फास्ट फूड, तली-भुनी चीज़ें और मीठे पदार्थों से परहेज करें।

फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, दलिया का सेवन करें

हर दिन कम से कम 30 मिनट वॉक या एक्सरसाइज करें।

दौड़ना, साइक्लिंग, तैराकी, योग या डांस जैसे एक्टिविटीज़ अपनाएं।

लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों का उपयोग करें।

लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठने से बचें।

रोज़ाना 6 से 8 घंटे की नींद ज़रूरी है।

तनाव से बचाव के लिए ध्यान, प्राणायाम और मेडिटेशन करें।

दिन में 8–10 गिलास पानी पीने से शरीर डिटॉक्स होता है।

मीठे पेय पदार्थ जैसे कोल्ड ड्रिंक या पैकेज्ड जूस से बचें।

स्क्रीन टाइम यावी टीवी, मोबाइल सीमित करें।

शराब और धूम्रपान न सिर्फ स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते