21वर्षीय युवती ने पांच लोगों को दिया नए जीवन का उपहार

 अंगदान की शानदार मिसाल पेश करते हुए 21वर्षीय युवती ने पांच लोगों को दिया नए जीवन का उपहार

फोर्टिस शालीमार बाग और आईजीआई एयरपोर्ट के टर्मिनल 1 के बीच ग्रीन कॉरिडोर के जरिए कुल 26 किलोमीटर की दूरी केवल 30 मिनट में तय की गई, 

छोटी आंत को सफलतापूर्वक गंतव्य तक पुहंचाया


नई दिल्ली (अमन इंडिया) । निःस्वार्थ भाव से परोपकार और दयाभाव की शानदार मिसाल पेश करते हुए, सड़क दुर्घटना की शिकार बनी 21-वर्षीय युवती के परिजनों ने अपार दुःख की घड़ी  में भी अपनी तकलीफ को भुलाकर अन्य कई लोगों के लिए आशा का संचार किया। फोर्टिस हॉस्पीटल, शालीमार बाग की मल्टी-डिसीप्लीनरी टीम की क्लीनिकल उत्कृष्टता की बदौलत अंगदान के इस महादान को सफलतापूर्वक पूरा किया गया जिसमें डॉक्टरों के अलावा सपोर्ट स्टाफ और अथॉरिटीज़ के बीच बेहतरीन तालमेल रहा। 

दुर्घटना में शिकार इस युवती के सिर में काफी गंभीर चोटें आयी थीं और उन्हें बेहद नाजुक अवस्था में फोर्टिस शालीमार बाग में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में सीटी स्कैन से इंट्राक्रेनियल ब्लड क्लॉट (खोपड़ी के भीतर रक्त का थक्का जमना) का पता चला जिसका आकार तेजी से बढ़ रहा है। मेडिकल टीम द्वारा तत्काल हस्तक्षेप के बावजूद, मरीज की हालत लगातार बिगड़ रही थी और उन्हें वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखना पड़ा। इसके बाद ब्रेन डेथ कमेटी द्वारा पूरी जांच और मूल्यांकन के उपरांत उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। 

मेडिकल टीम ने पूरी संवेदना और सहानुभूति के साथ, युवती के परिजनों को अंगदान के विकल्प के बारे में जानकारी दी। युवती के परिवार वालों ने मृतक के लिवर, किडनी, छोटी आंत और कॉर्निया दान करने का निर्णय लेकर अपने दुःख को कई मरीजों के लिए खुशियों में बदल दिया। लगभग छह घंटे चली ऑर्गेन रिट्रीवल प्रक्रिया के दौरान अस्पताल के विभिन्न 


विभागों ने आपस में बेहतरीन तालमेल का परिचय दिया। मृतक की कॉर्निया श्रॉफ आइ सेंटर और छोटी आंत मुंबई के नानावटी मैक्स हॉस्पीटल पहुंचायी गई। इस उद्देश्य से, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग से इंदिरा गांधी इंटरनेशल एयरपोर्ट के टर्मिनल 1 के बीच एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। इस ग्रीन कॉरिडोर की बदौलत, कुल 26 किलोमीटर की दूरी दोपहर 1:49 बजे से 2:20 बजे के बीच पूरी की गई। अस्पताल की अलग-अलग मेडिकल टीमों, प्रशासकों, सपोर्ट स्टाफ और ट्रैफिक पुलिस के बीच तालमेल ने एक बार फिर यह साबित कर दिखाया कि इच्छाशक्ति और आपस में सहयोग की भावना हो तो क्या नहीं किया जा सकता।

इस मामले की जानकारी देते हुए, डॉ सोनल गुप्ता, सीनियर डायरेक्टर एवं एचओडी, न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने कहा, “इस प्रेरणादायी मामले ने अंगदान के महत्व और इससे जीवन में आने वाले बदलावों की ओर इशारा किया है। जहां मस्तिष्क की चोटें मरीज और उससे जुड़े लोगों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं होती, वहीं अंगदान ऐसा कृत्य है जो परिजनों को अपने दुःख को अन्य बहुत से लोगों के लिए आशा और खुशियों में बदल सकता है।”

पंकज कुमार, सीनियर डायरेक्टर, क्रिटिकल केयर, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने कहा, “सिर की गंभीर चोटें, स्ट्रोक, और हाइपॉक्सिक ब्रेन इंसल्ट (मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी की वजह से क्षति पहुंचना) की वजह से कुछ मामलों में मस्तिष्क को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच सकती है। ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण मामलों में, यदि शरीर के अन्य अंग जीवित और कार्यरत रहते हैं, तो परिजन किसी दूसरे व्यक्ति की जान बचाने के लिए अंगदान करने का निस्सवार्थ फैसला कर सकते हैं।”

श्री दीपक नारंग, फेसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने कहा, “यह मामला इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि अंगदान से जीवन-रक्षा हो सकती है। हम डोनर के परिजनों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और आशा करते हैं कि उन्होंने जो कदम उठाया वह आगे चलकर दूसरे लोगों को भी प्रेरित करेगा। साथ ही, हम नोटो (NOTTO) और दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के भी आभारी हैं जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को निर्बाध तरीके से पूरा करने में सहायता दी।”

नोटो (नेशनल ऑर्गेन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइज़ेशन - NOTTO) के अनुसार, भारत में ऑर्गेन डोनर्स (अंगदान करने वाले लोगों) की भारी कमी है। जब किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित किया जाता है, तो अस्पतालों को मृतक के परिजनों को अंगदान करने के बारे में परामर्श देने की मंजूरी दी गई है। इस संबंध में, नोटो के निर्धारित मापदंडों और मार्गदर्शी निर्देशों के मुताबिक, इलाज करने वाला अस्पताल ही संभावित अंगदान करने के बाद सभी जरूरी सूचनाओं तथा आवश्यक मंजूरियों को जुटाने के लिए जिम्मेदार होता है।