फोर्टिस नोएडा के डॉक्टरों ने सात वर्षीय उज्बे की बच्चे के मस्तिष्क से 4 से.मी. लंबे आकार का ट्यूमर निकाला, किया सफल उपचार इस दुर्लभ ट्यूमर का आकार था मस्तिष्क से भी बड़ा
नोएडा (अमन इंडिया )। फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने सात वर्षीय उज्बे की बच्चे के मस्तिष्क के पिछले भाग (हाइंडब्रेन) से 4 से.मी. आकार का ट्यूमर निकालने के लिए एक जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। मरीज़ का उपचार पोस्टीरियर फॉसा (खोपड़ी के पिछले भाग में एक छोटे भाग) में रीडू सर्जरी से किया गया। डॉ राहुल गुप्ता, डायरेक्टर, न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने करीब 5 घंटे चली इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी को पूरा किया था। सर्जरी के 4 दिनों के बाद बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दी गई।
मरीज़ का इससे पहले, उज़्बेकिस्तान में 2021 में भी इलाज किया गया था, तब रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी से ट्यूमर को आंशिक रूप से ही हटाया गया। लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं होने पर मरीज़ का परिवार उन्हें भारत लेकर आया। यहां फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा में जब मरीज़ को भर्ती करवाया गया तो वह काफी उनींदी अवस्था में था, उसके सिर में तेज दर्द भी था, बीच-बीच में उल्टी की शिकायत के साथ-साथ चलने में परेशानी और भूख न लगने जैसी समस्याएं भी बनी हुई थीं। मरीज़ के मस्तिष्क की एमआरआई जांच से ट्यूमर की पुष्टि हुई और साथ ही, मस्तिष्क में पानी भी भरा था (हाइड्रोसेफलस)। डॉक्टरों ने मरीज़ की दोबारा सर्जरी करने का फैसला किया लेकिन यह करना आसान नहीं था क्योंकि इस छोटे बच्चे की यह रिपीट सर्जरी थी और वो भी खोपड़ी के उस जटिल हिस्से में इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाना था जहां पहले ही रेडिएशन से इलाज किया गया था।
सर्जरी के बारे में जानकारी देते हुए डॉ राहुल गुप्ता, डायरेक्टर, न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, ''ट्यूमर के आकार को देखते हुए यह काफी जटिल मामला था क्योंकि इसमें ट्यूमर का साइज़ हाइंडब्रेन की तुलना में बड़ा था और यह ब्रेनस्टेम को दबा भी रहा था। पॉस्टीरियर फॉसा की रीडू सर्जरी काफी चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि यह मस्तिष्क में
बहुत छोटे आकार का कम्पार्टमेंट होता है। इस मामले में, ब्रेनस्टेम जैसी महत्वपूर्ण संरचना और ट्यूमर के आसपास की महत्वपूर्ण रक्तवाहिकाओं की वजह से चुनौती बढ़ गई थी। यहां तक कि एक मामूली सर्जिकल त्रुटि से भी मरीज़ के शरीर में कई किस्म की जटिलताएं पैदा हो सकती थीं, जैसे कि श्वसन तंत्र में गड़बड़ी, हाथ-पैरों में कमज़ोरी या लकवा, लंबी अवधि तक मूर्छा (कोमा), और यहां तक कि मरीज़ की उम्र तथा रोग के दोबारा पनपने के चलते यह घातक भी हो सकती थी। यदि इस बच्चे का समय पर उपचार नहीं किया जाता, तो वह एक माह से अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता था। हमने मरीज़ की सर्जरी उसी स्थान पर चीरा लगाकर की जहां 2 साल पहले उज़्बेकिस्तान में चीरा लगाया गया था। 2021 में इस बच्चे को रेडिएशन दिए जाने के कारण टिश्यू काफी सख्त हो गए थे और आसपास के सारे टिश्यू आपस में इतने चिपक गए थे कि उनमें चीरा लगाना काफी मुश्किल था। हमारा पूरा ज़ोर सुरक्षित तरीके से इस ट्यूमर को बाहर निकालने पर था। हमने न सिर्फ इस ट्यूमर को निकाला बल्कि सभी महत्वपूर्ण संरचनाओं को भी सुरक्षित रखा और सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूड मार्ग को भी खोला ताकि हाइड्रोसेफेलस का भी इलाज किया जा सके। मरीज़ को एक दिन के लिए आईसीयू में ट्यूब लगाकर रखना पड़ा था और सर्जरी के 24 घंटे बाद ही उसने मुंह से खाना लेना शुरू कर दिया। यहां तक कि सर्जरी के 48 घंटे के बाद ही वह खुद चलने-फिरने लगा और चार दिनों के बाद मरीज़ को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। सर्जरी के बाद मरीज़ को किसी किस्म की स्वास्थ्य जटिलताओं से भी नहीं जूझना पड़ा था।''