फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स ने हिमोडायलसिस पर निर्भर 33 साल के एक मरीज़ का चुनौतीपूर्ण किडनी ट्रांसप्‍लांट सफलतापूर्वक किया

नई दिल्‍ली (अमन इंडिया ) ।  फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्‍ली के डॉक्‍टरों ने अरुणाचल प्रदेश के एक ग्रामीण इलाके में रहने वाले 33 वर्षीय मरीज़ फुन्‍सु त्‍सेरिंग के गुर्दों का सफल प्रत्‍यारोपण (किडनी ट्रांसप्‍लांट) किया है। यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था क्‍योंकि मरीज़ का 10 साल पहले भी गुर्दो प्रत्‍यारोपण किया जा चुका है लेकिन उन्‍हें क्रॉनिक एलोग्राफ्ट डिस्‍फंक्‍शन की शिकायत थी (किडनी ट्रांसप्‍लांट के बाद शरीर में क्रिटनाइन का स्‍तर तेजी से बढ़ता है) जिसके कारण उन्‍हें नियमित रूप से हिमोडायलसिस की जरूरत पड़ रही थी। डॉ संजीव गुलाटी, प्रिंसीपल डायरेक्‍टर – नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्‍लांट तथा डॉ अनिल गुलिया, डायरेक्‍टर, यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्‍लांट, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्‍ली के नेतृत्‍व में डॉक्‍टरों की टीम ने किडनी ट्रांसप्‍लांट को अंजाम दिया। यह सर्जरी 4 घंटे चली। मरीज़ को सर्जरी के 8वें दिन अस्‍पताल से छुट्टी दी गई। लेकिन इस कठिन और चुनौतीपूर्ण मामले में डॉक्‍टरों को तैयारियां करने और आखिरकार ट्रांसप्‍लांट करने में 1 साल का समय लगा। 


अस्‍पताल में मरीज़ की मेडिकल जांच के दौरान सभी जरूरी टैस्‍ट किए गए जिसमें प्री-ट्रांसप्‍लांट कॉम्‍पेटिबिलिटी टैस्टिंग और एचएलए टाइपिंग भी शामिल थो। मरीज़ का एक डोनर के साथ 3/6 का एचएलए मैच हो गया और इसके बाद उनके ब्‍लड में मौजूद मल्‍टीपल एवं हाइ एंटीबॉडीज़ का पता लगाने के लिए एक और स्‍पेशल टैस्‍ट भी किया गया। मरीज़ के मामले में ट्रांसप्‍लांट रिजेक्‍ट होने की संभावना काफी अधिक (>90%) थी क्‍योंकि उनके शरीर में एंटीबॉडीज़ की मात्रा काफी अधिक थी। मरीज़ को उनकी टैस्‍ट रिपोर्टों तथा रिजेक्‍शन की अधिक आशंका के बारे में बताया गया और डॉक्‍टरों ने उन्‍हें डायलसिस जारी रखने की सलाह दी। इसके बाद, मरीज़ ने किडनी ट्रांसप्‍लांट के लिए कई सेंटर्स से संपर्क किया लेकिन इतनी अधिक एंटीबॉडीज़ के मौजूद होने की वजह से उन्‍हें हर जगह मना कर दिया गया। लेकिन इसके बावजूद मरीज़ ने हार नहीं मानी और एक बार फिर फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला से संपर्क किया और वह लगातार किडनी ट्रांसप्‍लांट की जिद पर अड़े रहे। ऐसे में अस्‍पताल ने उनसे डीसेंसिटाइज़ेशन (एंटीबॉडीज़ का स्‍तर कम करने की प्रक्रिया) तथा हाइ-रिस्‍क ट्रांसप्‍लांट करने के बारे में अनुमति ली और उन्‍हें एंटीबॉडी कम करने की डीसेंसिटाइज़ेशन प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी दी गई। 


इस मामले की विस्‍तार से जानकारी देते हुए डॉ संजीव गुलाटी, प्रिंसीपल डायरेक्‍टर – नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्‍लांट तथा डॉ अनिल गुलिया, डायरेक्‍टर, यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्‍लांट, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्‍ली ने बताया, ''मरीज़ की 10 साल पहले किडनी ट्रांसप्‍लांट सर्जरी हो चुकी थी और एंड-स्‍टेज किडनी डिज़ीज़, जो कि हाइपरटेंशन के चलते पैदा हुई थी, के इलाज के लिए उस वक्‍त उनकी मां डोनर थी। ट्रांसप्‍लांट कराने के बाद उन्‍हें क्रॉनिक एलोग्राफ्ट डिस्‍फंक्‍शन की शिकायत हो गई थी। कुछ साल के बाद, मरीज़ की किडनी ब्रकार हो गई और उन्‍हें फिर से हिमोडायलसिस शुरू करवाना पड़ा। जब हमारे अस्‍पताल में मरीज़ की जांच की गई तो हमें पता चला कि उनके मामले में हाइ एंटीबॉडी की वजह से यह ट्रांसप्‍लांट खतरे से खाली नहीं है। इलाज की जटिल प्रक्रिया के तहत्, मरीज़ को एंटीबॉडी कम करने के लिए कई इंजेक्‍शंस और दवाएं दी गईं। प्‍लाज्‍़मा थेरेपी के 4 सेशंस के बाद एंटीबडी लैवल्‍स वापस आ चुके थे और यह पता चला कि उनके शरीर में अब भी एंटीबॉडीज़ की अधिक मात्रा बनी हुई है। उन्‍हें लौटने के लिए कहा गया लेकिन उन्‍होंने इससे इंकार कर दिया। एक परेशानी यह भी कि उनके राज्‍य में डायलसिस भी आसानी से उपलब्‍ध नहीं है और मरीज़ के बचने की संभावना भी काफी कम थी। इसलिए मरीज़ रिजेक्‍शन का जोखिम भी लेने को तैयार था। यह देखकर किडनी ट्रांसप्‍लांट टीम ने आगे की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया। मरीज़ को प्‍लाज्‍़मा थेरेपी के 4 और सेशंस दिए गए और इस बार, उनके शरीर में एंटीबॉडीज़ की मात्रा स्‍वीकृत रेंज में मिली। यह हमारे लिए राहत का विष्‍य था। अब उन्‍हें एक स्‍पेशल एंटीरिजेक्‍शन एजेंट – एंटी-थाइमोसाइट ग्‍लोब्‍युलिन (एटीजी) की हाइ डोज़ और अन्‍य दवाएं दी गईं तथा उसके बाद हमने उनकी किडनी ट्रांसप्‍लांट की। मरीज़ का स्‍वास्‍थ्‍य इस ट्रांसप्‍लांट के बाद सही है और किडनी बायोप्‍सी से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि उनके शरीर ने इस किडनी को रिजेक्‍ट नहीं किया है। यदि यह ट्रांसप्‍लांट नहीं किया जाता, तो बहुत मुमकिन है कि मरीज़ ज्‍यादा से ज्‍यादा पांच साल तक और जीवित रहता।'' 

बिदेश चंद्रा पॉल, ज़ोनल डायरेक्‍टर, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट, ओखला, नई दिल्‍ली ने कहा, ''यह मामला तमाम जोखिमों की वजह से काफी चुनौतीपूर्ण मामला था। लेकिन डॉ संजीव गुलाटी तथा डॉ अनिल गुलिया के नेतृत्‍व में डॉक्‍टरों की टीम ने इस मामले के सभी मानकों का मूल्‍यांकन किया और प्रक्रिया को सही तरीके से अंजाम दिया। फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स देश में कार्डियो-वास्‍क्‍युलर सर्जरी करने वाली प्रीमियम हैल्‍थकेयर सुविधा है, और साथ ही, यहां अंगों के प्रत्‍यारोपणों की भी समुचित व्‍यवस्‍थ है, तथा हम अपने मरीज़ों की सर्वोत्‍तम क्‍वालिटी की देखभाल के लिए पूरी तरह से प्रयासरत रहते हैं।''

फोर्टिस हैल्‍थकेयर लिमिटेड के बारे में 

फोर्टिस हैल्‍थकेयर लिमिटेड, जो कि आईएचएच बेरहाड हैल्‍थकेयर कंपनी है, भारत में अग्रणी एकीकृत स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रदाता है। यह देश के सबसे बड़े स्‍वास्‍थ्‍यसेवा संगठनों में से एक है जिसके तहत् 27 हैल्‍थकेयर सुविधाओं समेत (इनमें वे परियोजनाएं भी शामिल हैं जिन पर फिलहाल काम चल रहा है), 4300 बिस्‍तरों की सुविधा तथा 400 से अधिक डायग्‍नॉस्टिक केंद्र (संयुक्‍त उपक्रम सहित) हैं। भारत के अलावा, संयुक्‍त अरब अमीरात (यूएई) तथा श्रीलंका में भी फोर्टिस के परिचालन है। कंपनी भारत में बीएसई लिमिटेड तथा नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज (एनएसई) पर सूचीबद्ध है। यह अपनी ग्‍लोबल पेरेंट कंपनी आईएचएच से प्रेरित है तथा मरीज़ों की विश्‍वस्‍तरीय देखभाल एवं क्‍लीनिकल उत्‍कृष्‍टता के उनके ऊंचे मानकों से प्रेरणा लेती है। फोर्टिस के पास ~23,000 कर्मचारी (एसआरएल समेत) हैं जो दुनिया में सर्वाधिक भरोसेमंद हैल्‍थकेयर नेटवर्क के तौर पर कंपनी की साख बनाने में लगातार योगदान देते हैं। फोर्टिस के पास क्‍लीनिकल से लेकर क्‍वाटरनरी केयर सुविधाओं समेत अन्‍य कई एंसिलियरी सेवाएं उपलब्‍ध हैं।