भारतीय उपभोक्ता न्यूट्रिएंट्स से भरपूर पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के आगे वार्निंग लेबल लगाने के लिए तैयार

 शीर्ष शोधकर्ताओं और डॉक्टरों ने अस्वास्थ्यकर पैकेज्ड भोजन पर वार्निंग लेबल लगाने के लिए कहा, एचएसआर ने इसे अस्वीकार कर दिया


दिल्ली (अमन इंडिया)। प्रमुख राष्ट्रीय सोशल वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक राष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि भारतीय उपभोक्ता न्यूट्रिएंट्स से भरपूर पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के आगे वार्निंग लेबल लगाने के लिए तैयार हैं। एक रेंडमाइज्ड कंट्रोल फील्ड एक्सपेरिमेंट किया गया जिसमें 6 राज्य शामिल हुए। इस एक्सपेरिमेंट से वही बात सामने आई जो एक लंबे समय से सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ तथा शीर्ष डॉक्टर कह रहे हैं। उन्होंने एक सरल, नेगेटिव वार्निंग लेबल लगाने के लिए अपनी बात रखी है जोकि स्पष्ट रूप से अस्वास्थ्य कर उत्पादों की पहचान करती हैं तथा मधुमेह उच्च रक्तचाप तथा मोटापे जैसे स्वास्थ्य संकट जैसी स्वास्थ्य की समस्याओं से बचने के लिए सबसे अच्छा काम करती हैं। 

यह अध्ययन ऐसे समय में आया है जब कई वर्षों के अंतराल के बाद, एफएसएसएआई ने एक बार फिर से फ्रंट-ऑफ-पैकेज लेबल (एफओपीएल) विनियमन का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, डॉक्टरों और उपभोक्ता अधिकार समूहों ने चेतावनी दी है कि भारत को एक प्रभावी लेबल डिजाइन को अपनाने के लिए साक्ष्य और विज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। 2022 की शुरुआत में यह फील्ड रिसर्च, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग सर्वे ऑफ इंडिया (एलएएसआई) जैसे ऐतिहासिक सर्वेक्षणों के लिए जाने जाने वाले भारत के प्रमुख अनुसंधान और शिक्षण संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक साइंस द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में आयोजित किया गया था। प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ एस के सिंह, प्रोफेसर, आईआईपीएस, मुंबई, ने इस अनुसंधान को सही समय पर तथा पूरी तरह से साइंटिफिक बताते हुए कहा, "लोगों ने उस विज्ञान की पुष्टि करते हुए बात की है जिसे हम सभी जानते हैं। स्पष्ट रूप से दिखने वाले सरल एवं नेगेटिव वार्निंग लेबल किसी भी उत्पाद के बारे में सही जानकारी देंगे तथा साथ ही साथ खरीदारी के निर्णय को भी प्रभावित करेंगे। वार्निंग लेबल ही एकमात्र एफओपीएल थे जिसके कारण स्वस्थ उत्पादों के प्रति उपभोक्ता खरीद निर्णय में महत्वपूर्ण बदलाव आया। इसने पोषण संबंधी जानकारी को सबसे प्रभावी ढंग से प्रसारित किया और जैसा कि हम पिछले साक्ष्यों से जानते हैं, कि यदि जनता को उनके स्वास्थ्य के प्रति उचित संदेश दिया जाए तो खानपान से जुड़े हुए उनके व्यवहार में हमेशा सकारात्मक बदलाव देखा गया है। मैं वास्तव में आशान्वित हूं कि यह महत्वपूर्ण अध्ययन एफएसएसएआई के निर्णय को प्रभावित करेगा क्योंकि यह एफओपीएल को भारत के बेहद जरूरी समझते हैं।" 

इस प्रयोग में, असम, दिल्ली, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लगभग 2900 वयस्कों को अस्वस्थ उत्पादों की एक श्रृंखला देखने के लिए कहा गया था, जो प्रचलित पांच लेबलों में से एक को प्रदर्शित करता है। मल्टीपल ट्रैफिक लाइट लेबल - एक ऐसा लेबल है जोकि यूके जैसे देशों द्वारा पसंद किया जाता है। गाइडलाइन डेली अमाउंट्स (जीडीए) और हेल्थ स्टार रेटिंग (एचएसआर)- इंडस्ट्री द्वारा पसंद किए जाने वाले लेबल। वार्निंग लेबल, दोनों ही परिस्थितियों प्राइमरी तथा सेकेंडरी आउटकम में शीर्ष स्कोरर के रूप में सामने आया।  

13 वर्षों की अवधि में, भारत में अल्ट्रा प्रोसैस्ड और पेय पदार्थों की खपत लगभग 40 गुना बढ़ गई है। इस आहार परिवर्तन के कारण भारत में आहार से जुड़ी बीमारियों में भारी वृद्धि हुई है। लगभग 4 में से 1 वयस्क को अधिक वजन या मोटापे से पीड़ित हैं और अगर इसे समय रहते कठोर तरीके से संभाला नहीं गया तो मोटापे की यह समस्या 2040 तक तिगुनी से अधिक होने की उम्मीद है। एक ऐसा एफओपीएल जोकि स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक पोषक तत्व की सीमा को दिखाता हो इस तरह की समस्या से निजात दिला सकता है यह एफओपीएल, WHO SEARO न्यूट्रिएंट प्रोफाइल मॉडल (NPM) जैसे मॉडल के अनुरूप होना चाहिए। ऐसा एफओपीएल, प्रभावी रूप से उपभोक्ताओं को स्वस्थ खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों की ओर आकर्षित करेगा जबकि इंडस्ट्री को उनके द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों के पोषण संबंधी प्रोफाइल में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। 

एपिडेमियोलॉजिकल फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ उमेश कपिल ने सही और वैज्ञानिक रूप से चयन करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, "यह जानकर खुशी हो रही है कि आईआईपीएस स्टडी ने एम्स द्वारा हाल ही में जारी पैन इंडिया ऑब्ज़र्वेशनल स्टडी के निष्कर्षों का समर्थन किया है जिसमें हाई-इन स्टाइल' सरल चेतावनी लेबल, स्पष्ट विजेता के रूप में उभरे। ये वैज्ञानिक अध्ययन देश के शीर्ष विशेषज्ञों द्वारा किए जाते हैं। हम एफएसएसएआई से अपील करते हैं कि इस चेतावनी को बिल्कुल भी नजरअंदाज ना करें क्योंकि एफओपीएल के इस फैसले से इस बात का निर्धारण होगा कि आने वाले वर्षों में भारत में बीमारियों का स्तर कैसा रहेगा। एचएसआर नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज के संकट को नहीं रोक सकता - यह काम स्पष्ट रूप से केवल वार्निंग लेबल ही कर सकते हैं।"