नोएडा (अमन इंडिया)। फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के मल्टी-स्पेश्यलिटी डॉक्टरों की टीम ने एक प्री-टर्म शिशु को कई जटिल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रक्रियाओं की मदद से नया जीवनदान दिया है। यह शिशु जन्मजात ल्युकीमिया और इम्युनोडेफिशिएंसी से पीड़ित था। गर्भावस्था के 30वें हफ्ते में जब इस शिशु का जन्म हुआ तो इसके बचने की संभावना मात्र 15% थी। लेकिन डॉ मोनिका वधावन, सीनियर कंसल्टैंट, ऑब्सटैट्रिक एवं गाइनीकोलॉजी तथा डॉ लतिका साहनी उप्पल, कंसल्टैंट, नियोनेटोलॉजी के नेतृत्व में अस्पताल के डॉक्टरों की टीम इस शिशु को बचाने में सफल रही।
इस शिशु की मां की गर्भावस्था के 30वें हफ्ते में जांच के दौरान, डॉ वधावन ने गंभीर इंट्रा यूटराइन ग्रोथ रेस्ट्रिक्शन (आईयूजीआर) पाया जिसका मतलब यह था कि गर्भस्थ शिशु की मूवमेंट बहुत कम थी। डॉपलर अल्ट्रासाउंड से इस बात की पुष्टि हुई कि रिवर्स ब्लड फ्लो की वजह से गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त रक्त और पोषण नहीं मिल रहा था। डॉ वधावन ने इस मामले की जटिलता को भांपकर शिशु को बचाने के लिए तत्काल सीज़ेरियन सैक्शन करने का फैसला किया। लेकिन प्रसव कराने के बाद जब शिशु गर्भ से बाहर निकला तो उसका वज़न सिर्फ 1 किलोग्राम था, उसे तत्काल नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में भेजा गया। यहां शिशु को तुरंत सीपीएपी सपोर्ट दिया गया जिससे उसे कृत्रिम तरीके से सांस दी गई।
इस मामले की जानकारी देते हुए डॉ मोनिका वधावन ने बताया, ''शिशु की मां की हालत काफी नाजुक थी जिसका कारण गर्भावस्था के चलते पैदा हुआ उच्च रक्तचाप था। इसकी वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर असर पड़ा। इसके अलावा भी कई जोखिम थी जिन्हें देखते हुए मरीज़ को अस्पताल में भर्ती किया गया। अगले दिन, उन्हें इमरजेंसी प्रीटर्म लेबर पेन शुरू हो गए। जांच के बाद हमने इमरजेंसी सी-सैक्शन करने का फैसला किया क्योंकि शिशु की हालत पहले ही काफी खराब होने लगी थी। इसके बाद, डॉ लतिका और उनकी टीम को इसकी जानकारी दी गई और उन्होंने काफी बेहतरीन उपचार दिया जो कि सराहनीय है।''
जन्म के 72 घंटे बाद ही शिशु में कल्चर पॉजिटिव सेप्सिस पाया गया, जो कि बैक्टीयिल और फंगल दोनों था और जिसकी वजह से उसके जीवन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा था और बचने की संभावना काफी कम थी। पूरी स्थिति इस वजह से और भी बिगड़ गई थी कि शिशु के रक्त में प्लेटलेट्स और हिमोग्लोबिन का स्तर लगातार घट रहा था। मल्टीपल ब्लड ट्रांसफ्यूज़न्स के बावजूद, पैंसीटोपीनिया बना रहा जिससे यह संकेत मिला कि संभवत: शिशु को बोन मैरो डिसॉर्डर जैसे कि ल्यूकीमिया हो सकता है। लेकिन शिशु अभी इतना छोटा और नाजुक था कि उसकी बोन मैरो जांच नहीं हो सकती थी, लिहाज़ा डॉक्टरों ने रोग का पता लगाने के लिए अन्य तरीकों की मदद ली। डॉ लतिका ने शिशु की देखभाल के लिए एक विस्तृत कार्य योजना सावधानीपूर्वक तैयार की। इस बीच, डॉक्टर और मां लगातार डटे रहे और उनके प्रयासों का ही नतीजा था कि शिशु ने उपचार पर ठीक से रिस्पॉन्स दिया और अस्पताल में 4 सप्ताह रहने के बाद वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गया।
डॉ लतिका साहनी ने बताया, ''लगातार निगरानी और डॉक्टरों के उपचार तथा अभिभावकों की हिम्मत के चलते यह शिशु 4 सप्ताह में पूरी तरह से स्वस्थ हो गया है और अब उसका वज़न भी बढ़ रहा है। शिशु को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।''
हरदीप सिंह, ज़ोनल डायरेक्टर, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा ने कहा, ''फोर्टिस अस्पताल, नोएडा की टीम जीवन बचाने के लिए हर संभव प्रयास करती है और उस स्थिति में भी हार नहीं मानती जबकि बचने की संभावना सिर्फ 1% होती है। यह शिशु एक दुर्लभ किस्म के आनुवांशिक विकार से पीड़ित था जिसे काफी सावधानीपूर्वक संभाला गया और पिडियाट्रिक्स एवं डॉ रामालिंगम कल्याण के नेतृत्व में नियोनेटोलॉजी की टीम ने काफी धैर्य का परिचय देते हुए इलाज किया।''