आईएलएफएटी कानूनी सुधार, रोकथाम और सुरक्षा रणनीतियों के जरिये देश को सभी प्रकार की मानव तस्करी से मुक्त बनाने के साझा दृष्टिकोण वाले सभी लोगों को साथ आने के लिए करता है आमंत्रित
नई दिल्ली (अमन इंडिया) : मानव तस्करी के सभी रूपों को खत्म करने के इरादे के साथ, मानव तस्करी के सभी रूपों से पीडि़त 2500 से अधिक लोग इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग (आईएलएफएटी) का गठन करने के लिए एक साथ आए हैं। यह पीडि़त तस्करी के विभिन्न रूपों- जबरन और बंधुआ मजदूरी, यौन तस्करी, भीख, बाल वधु विवाह, घरेलू बंधक, ईंट और चूड़ी फैक्टरियों में काम करने वाले- के खिलाफ जमीनी स्तर पर लड़ रहे हैं और नीति में बदलाव, शिक्षा एवं सशक्तिकरण के जरिये राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण बदलाव लाने के लिए एक समन्वित रणनीति बनाने के लिए एक मंच पर एकत्रित हुए हैं।
विभिन्न समूहों – उत्थान (पश्चिम बंगाल), बंधन मुक्ति (पश्चिम बंगाल), विमुक्ति (पश्चिम बंगाल), बीजोयिनी (पश्चिम बंगाल), आईजेएम द्वारा सामूहिक रूप से समर्थित चैम्पियंस ग्रुप (पश्चिम बंगाल), ओडिशा माइग्रेंट लेबर एसोसिएशन (ओएमबीएलए) (ओडिश), जन जागरण मजदूर अधिकार मंच (छत्तीसगढ़), आजाद शक्ति अभियान (उत्तर प्रदेश), इरोड डिस्ट्रिक वूमन फेडरेशन (तमिलनाडु), विजेता (बिहार) और बिहान समूह (झारखंड) से आए पीडि़तों का मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चलाने और तस्करी पीडि़तों के लिए न्याय तक पहुंच में सुधार लाने का एक साझा मिशन है।
आईएलएएफटी लीडर 1( बसंती(बदला हुआ नाम) ने कहा, “हम अपने जीवन का पुनर्निर्माण कर रहे हैं और हम यह चाहते हैं कि नीति-निर्माण प्रक्रिया में हमें प्रमुख हितधारक के रूप में शामिल किया जाए। लंबे समय से, हमनें बिना परामर्श लिए या हमारे जीवन अनुभव को समझे बिना ही निर्णय लिए जा रहे हैं। नीति बनाने में हम एक भागीदारी भूमिका निभाना चाहते हैं, क्योंकि यह कानून और नीतियां हमारे बारे में हैं और यह हमारी आवाज और भागीदारी के बिना पूरा नहीं हो सकते हैं।”
आठ राज्यों में प्रतिनिधित्व बढ़ने के साथ अब पीडि़त, विषय विशेषज्ञ, नीति निर्माता और नागरिक सामाजिक संगठन साथ आकर अपने सदस्यों की आवश्यकताओं, चिंताओं और हितों को स्पष्ट करते हैं, एक अनुकूल नीति और विधायी पारिस्थितिकी तंत्र बनाकर उन्हें सशक्त बनाने का काम करते हैं, जो संवाद को बढ़ावा देता है, प्रमुख चुनौतियों और साक्ष्य की कमियों की पहचान करता है, समाधान संचालित प्रयासों, नीतियों और कार्यक्रम की योजना बनाने के लिए अनुमति देता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों से आए पीडि़तों के बीच प्रारंभिक परामर्श बैठकों के दौरान, चार प्रमुख स्पष्ट क्षेत्रों, जिन्हें तत्काल वकालती प्रयासों की आवश्यकता है, को चिन्हित किया गया:
- पीडि़त मुआवजा : तस्करी पीडि़तों के लिए पीडि़त मुआवजा बचाव के आधार पर सशर्त नहीं होना चाहिए। जागरूकता की कमी, और कानूनी बाधाओं के साथ लड़ाई की एक बोझिल प्रक्रिया ने तस्करी किए गए लोगों की संख्या और मुआवजा हासिल करने वाले पीडि़तों की संख्या के बीच अंतर पैदा करने में योगदान दिया है।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता : यहां एक समर्पित व्यक्ति द्वारा बेहतर परामर्श की तत्काल आवश्यकता है, जो पीडि़त की भलाई सुनिश्चित करे और उनके साथ सम्मान एवं देखभाल का व्यवहार करे। व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, जिसे पिछली सरकार में कानून नहीं बनाया जा सका, को दोबारा पेश किया जाना चाहिए, पुनर्वास अवधि के दौरान पीडि़तों के मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए।
- अपराधी को सजा : तस्करी को गैर-जमानती अपराध होना चाहिए और अपराधी को कम से कम आजीवन कारावास की सजा मिलनी चाहिए। बेहतर सजा दर और कठोर दंड के साथ इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
- कलंक को खत्म करना : महिला पीडि़तों को पुरुष पीडि़तों की तुलना में अधिक अपमान सहना पड़ता है। नए तस्करी-विरोधी अधिनियम में सामाजिक, व्यक्तिगत और आर्थिक विकास के लिए अवसरों को सुनिश्चित करने के जरिये पीडि़तों का समाज में पुर्नएकीकरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नेपाल, बांग्लादेश और भारत में समाज-आधारित पुनर्वास के मौजूदा मॉडल उपलब्ध हैं।
आईएलएफएटी लीडर 2 (नसरीन(बदला हुआ नाम) ने कहा, “पीडि़त मुआवजा हासिल करना अपने आप में एक सजा है। मुआवजे के लिए आवश्यक लंबी-चौड़ी कागजी कार्रवाई पीडि़तों के अपमान और आघात को बढ़ाती है और उन्हें कई बार अपने पुराने अनुभवों को याद करना पड़ता है। मानव तस्करी के शिकार, जिनके पास अक्सर कानूनी प्रक्रिया की थोड़ी या कोई जानकारी नहीं होती है, को मुआवजा पाने, जिसके लिए वो हकदार हैं, के लिए जटिल और अक्सर प्रशासनिक प्रक्रियाओं के साथ संघर्ष करना पड़ता है। जब तस्करी एक राज्य से दूसरे राज्य में होती है, तब विभिन्न राज्यों के प्राधिकरणों के बीच समन्वय एक अन्य समस्या बन जाता है। मुआवजा बैंक खाते में ही जमा किया जाता है, इसलिए बैंक खाता खुलवाने की प्रक्रिया को भी निर्बाध होना चाहिए। आईएलएफएटी की मांग है कि सरकार और सभी हितधारक मुआवजे के लिए एक मजबूत पीडि़त केंद्रित प्रणाली को परिभाषित और निर्माण करने के लिए मिलकर काम करें। हमारी यह भी मांग है कि सरकार को पीडि़तों के लिए सरकारी नौकरी का प्रावधान करना चाहिए।”
आईएलएफएटी लीडर 3 ने कहा, “हम में से अधिकांश लोगों ने उन जिम्मेदारी अधिकारी/कर्मचारी द्वारा भेदभाव, अपमान और साफ इनकार का सामना किया है, जो हमें न्याय और पुनर्वास दिलाने के लिए जिम्मेदार हैं।