*दुर्लभ ब्लैक ब्रेन ट्यूमर के मामले हर साल 10 मिलियन की आबादी में मात्र 0.5 में ही सामने आते हैं
नई दिल्ली (अमन इंडिया ) । फोर्टिस शालीमार बाग में 72 वर्षीय महिला की सर्जरी कर एक दुर्लभ और जटिल ब्लैक ब्रेन ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाला गया। इस नाजुक और दुर्लभ किस्म की सर्जरी को न्यूरोसर्जनों की एक कुशल टीम ने अंजाम दिया, और मरीज की रिकवरी सुनिश्चित की। यह ट्यूमर अपनी दुर्लभ प्रकृति और लोकेशन के चलते अपनी तरह की अनूठी चुनौतियों के साथ था लेकिन डॉक्टरों ने आसपास के टिश्यूज़ को नुकसान पहुंचाए बगैरह बेहद कुशलता के साथ इसे निकाला। डॉ सोनल गुप्ता, डायरेक्टर एंड एचओडी न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इस जटिल डुअल ब्रेन सर्जरी को दक्षता के साथ पूरा किया।
पिछले साल अक्टूबर में, मरीज बेहोश होने के बाद से अपने शरीर के दाएं हिस्से में काफी कमजोरी महसूस करने लगी थीं। तब उनका ग्वालियर में सीटी स्कैन किया गया जिससे ब्रेन हेमरेज का पता चला। उनका पारंपरिक तरीके से उपचार शुरू किया गया और वह धीरे-धीरे रिकवर करने लगीं। लेकिन इस साल शुरू में, उनके दाएं भाग में लकवा हुआ और उन्हें बोलने में भी कठिनाई महसूस होने लगी। इस वजह से वह बिस्तर तक सिमटकर रही गई थीं। ग्वालियर में ही दोबारा सीटी स्कैन और एमआरअई जांच करने पर उसी जगह दोबारा ब्रेन हेमरेज होने का पता चला और इस बार पिछली बार से भी अधिक बड़े आकार का खून का थक्का दिखायी दिया।
मरीज को एडवांस केयर तथा एक्सपर्ट परामर्श के लिए फोर्टिस शालीमार बाग लाया गया। यहां विस्तृत जांच के बाद, उनके ब्रेन के दोनों भागों में ब्लीडिंग ट्यूमर का पता चला। मामले की नाजुकता और जटिलताओं को देखते हुए, उनका दो चरणों में ऑपरेशन किया – पहली सर्जरी बायीं तरफ के ट्यूमर पर की गई और इसके 48 घंटे के बाद मरीज को ब्रेन के दांए भाग की हड्डी में ट्यूमर की दूसरी सर्जरी के लिए ले जाया गया। सर्जरी के दौरान, इस ट्यूमर की दुर्लभ ब्लैक ट्यूमर (मेलानोमा) के तौर पर पहचान की गई, जिसकी वजह से ब्लीडिंग भी होती है।
पहली सर्जरी 9-10 घंटे तक चली और ब्रेन में सूजन को मैनेज करने के लिए, मरीज को सर्जरी के बाद वेंटिलेटर पर रखा गया। दोनों सर्जरी के बाद, उनकी एक बड़ी धमनी में ट्यूमर का एक छोटा हिस्सा छोड़ना पड़ा था क्योंकि धमनियों को खोलने की वजह से ब्लीडिंग खतरनाक हो सकती थी और ब्रेन में भी सूजन की आशंका थी। सर्जरी के महीने भर बाद मरीज के बाकी बचे ट्यूमर को हटाने के लिए रेडियोथेरेपी की गई। अब मरीज स्वास्थ्य लाभ कर रही थीं और आत्मनिर्भर भी हैं।
इस मामले की दुर्लभता के बारे में, डॉ सोनल गुप्ता, डायरेक्टर एंड एचओडी न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने कहा, “यह ब्लैक ब्रेन ट्यूमर का बेहद दुर्लभ किस्म का मामला था और 10 मिलियन में से केवल 0.5 मामले ही हर साल सामने आते हैं। इसके अलावा, एक बार में मरीज की दो ब्रेन सर्जरी की गई थी। कई घंटों चली सर्जरी के दौरान काफी खून भी बहा, और मरीज की अधिक उम्र (72 वर्ष) के मद्देनज़र ट्रीटमेंट के अलग-अलग चरणों में भी कई तरह की चुनौतियां पेश आती रही थीं। सच तो यह है कि मरीज की श्वसन नली में भी अपने आप से एक सतह बनने लगी थी। इसलिए, सर्जरी के बाद उनका ब्रोन्कोस्कोपिक ट्रीटमेंट भी किया गया। चूंकि ऐसे मरीजों को एनेस्थीसिया के दौरान वेंटिलेटर पर रखा जाता है, और उन्हें वेंटिलेटर से हटाना काफी मुश्किल होता है। इस ट्यूमर का यदि समय पर उपचार नहीं किया जाता तो मरीज की कुछ ही महीनों में मृत्यु हो सकती थी। अब पूरी थेरेपी के बाद, अगले 5 वर्षों तक उनके जीवित रहने की संभावना 70-80% है और वह लकवाग्रस्त नहीं हैं या अन्य किसी किस्म की विकलांगता से भी प्रभावित नहीं है तथा आत्मनिर्भर हैं।
श्री दीपक नारंग, फैसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने कहा, “यह बेहद दुर्लभ किस्म का ट्यूमर था, और इसकी लोकेशन के चलते सर्जरी काफी जटिल थी। लेकिन डॉ सोनल गुप्ता और डॉक्टरों की टीम ने इस मामले को काफी सावधानी के साथ हैंडल किया। ऐसे मामलों में सटीक डायग्नॉसिस के साथ-साथ सही मैनेजमेंट की भी जरूरत होती है। फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग इस प्रकार के चुनौतीपूर्ण मामलों को मैनेज करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है।
72 वर्षीय मरीज ने कहा, “शुरू में मैं ग्वालियर के एक अस्पताल में गई थी, जहां डॉक्टर ने बताया कि ट्यूमर का आकार छोटा है। लेकिन जब मेरी कंडीशन में कोई सुधार नहीं हुआ तो मैंने फोर्टिस शालीमार बाग में डॉ सोनल गुप्ता से सेकेंड ओपिनियन लेने का फैसला किया, और यहां पता चला कि वास्तव में, मेरे ब्रेन ट्यूमर का आकार बड़ा था। सर्जरी से पहले, मैं पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर थी, यहां तक कि मैं अपने आप वॉशरूम भी नहीं जा पाती थी और मेरी याददाश्त भी कमजोर पड़ रही थी। सर्जरी के बाद से मेरी सेहत में काफी सुधार हुआ है। अब मैं अपने रोजमर्रा के काम खुद कर पाती हूं और मेरी याददाश्त में भी धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। हम डॉ सोनल गुप्ता और उनकी टीम के आभारी हैं जिन्होंने काफी बेहतरीन देखभाल की है।