फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ओखला में हाइ-रिस्क टीएवीआर सफलतापूर्वक संपन्न


66-वर्षीय मरीज के हार्ट वाल्व में रक्तप्रवाह में आयी रुकावट दूर करने के लिए फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ओखला में हाइ-रिस्क टीएवीआर सफलतापूर्वक संपन्न

 

_मरीज की इससे पहले बेंटल सर्जरी भी हो चुकी थी


नई दिल्ली (अमन इंडिया ) ।  फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, ओखला के डॉक्टरों ने 66-वर्षीय बुजुर्ग महिला मरीज की जीवनरक्षा के लिए एक जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। मरीज के हृदय के संकुचित बायोप्रोस्थेटिक एओर्टिक वाल्व के कारण रक्तप्रवाह में काफी गंभीर रूप से रुकावट आ रही थी। इससे पहले, 2011 में उनकी बेंटल प्रक्रिया से सर्जरी भी हो चुकी थी और अब उन्हें गंभीर एओर्टिक स्टेनॉसिस (डिजेनरेटेड एओर्टिक वाल्व, जिसमें औसत दबाव 81 mmHg था) की शिकायत थी। इसके अलावा, संकुचित एओर्टा का इलाज नहीं होने की वजह से उनकी फीमरल आर्टरी तक पहुंचना भी काफी मुश्किल था, इसका इस्तेमाल अक्सर टीएवीआर (ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट) के लिए किया जाता है।


डॉ प्रवीर अग्रवाल, एग्जीक्युटिव डायरेक्टर – इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने करीब 1.5 घंटे में चुनौतीपूर्ण टीएवीआर (ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट) इंटरवेंशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। मरीज को 6 दिन बाद स्थिर हालत में अस्पताल से छुट्टी दी गई। 


अस्पताल में भर्ती के समय, मरीज को सांस लेने में कठिनाई थी और छाती में भी दर्द था। मरीज की इको-कार्डियोग्राफी की गई जिससे उन्हें गंभीर एओर्टिक स्टेनॉसिस (हार्ट वाल्व से रक्तप्रवाह में रुकावट) होने का खुलासा हुआ। चूंकि एओर्टिक रूट काफी छोटे आकार की थी, इसलिए वाल्व का चयन करना काफी महत्वपूर्ण काम था (सुप्रा एन्यूलर वाल्व चुना गया)। उल्लेखनीय है कि दोबारा बेंटल सर्जरी को हाइ-रिस्क माना जाता है। इसलिए, मरीज के इलाज के लिए, टीएवीआर प्रक्रिया को चुना गया। इस प्रक्रिया के बाद मरीज को एओर्टिक वाल्व स्टेनॉसिस के लक्षणों में काफी राहत महसूस हो रही है। 


इस मामले की जानकारी देते हुए, डॉ प्रवीर अग्रवाल, एग्जीक्युटिव डायरेक्टर – इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ने कहा, “यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारी बुजुर्ग आबादी में, 75 साल की उम्र के बाद एओर्टिक स्टेनॉसिस के मामले 3% तक देखे गए हैं। इस मामले में, मरीज ने 13 साल पहले बेंटल प्रक्रिया करवायी थी और अब उन्हें गंभीर एओर्टिक स्टेनॉसिस ((डिजेनरेटेड बायोप्रोस्थेटिक वाल्व) की शिकायत थी। इसके अलावा, मरीज की पूर्व में बेंटल सर्जरी के चलते भी मामला काफी गंभीर था और एओर्टा में संकुचन का उपचार नहीं होने से एक्सेस भी मुश्किल था। यदि समय पर सिंपटोमेटिक एओर्टिक स्टेनॉसिस का उपचार नहीं किया जाता, तो इससे मृत्यु दर बढ़ने की पूरी आशंका रहती है।


डॉ विक्रम अग्रवाल, फैसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ने कहा, “यह केस मरीज की उम्र और उनकी नाजुक हालि के मद्देनज़र काफी क्रिटिकल था, साथ ही, उनकी पहले बेंटेल सर्जरी भी हो चुकी थी जिसके चलते स्थति काफी चुनौतीपूर्ण थी। लेकिन इन तमाम परेशानियों के बावजूद, मरीज का मेडिकली सही मूल्यांकन किया गया और फिर सफल सर्जरी कर उनकी जान बचायी जा सकी। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ने अपनी क्लीनिकल विशेषज्ञता और एडवांस टैक्नोलॉजी के दम पर साख बनायी है, और हम मरीजों की जीवनरक्षा और बेहतर परिणामों के लिए उनकी बेहतर केयर के लिए हमेशा काम करते हैं।