बुखार,थकान और शरीर में दर्द हो सकते हैं ल्यूपस के संकेत
-पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक देखने को मिलता है ल्यूपस
-लंबे समय से बुखार आए और धूप में त्वचा लाल हो तो डॉक्टर को दिखाएं
नोएडा (अमन इंडिया ) । अगर आपको अपनी शरीर में स्किन, घुटनों, लंग्स और दूसरी जगहो पर सूजन महसूस होता है, तो इसको हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह ल्यूपस के लक्षण हो सकते हैं। बीमारी के प्रति जागरुकता के लिए विश्व ल्यूपस दिवस मनाया जाता है।
फेलिक्स अस्पताल की रुमेटोलॉजिस्ट डॉ. किरण सेठ ने बताया कि दुनियाभर में 10 मई का दिन वर्ल्ड ल्यूपस दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना है। जिससे पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं।ल्यूपस कोई ऐसी बीमारी नहीं है जो छूने से फैलती है। ना ही यौन संबंध बनाने से फैलती है। लेकि यह बीमारी शरीर के जिस भी भाग पर होती है उसे पूरी तरह से डैमेज कर सकती है। ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो शरीर के सेल्स और टिश्यूज को डैमेज करने का काम करती है। जिसके चलते ह्रदय, फेफड़ों, ज्वाइंट्स, स्किन, दिमाग पर असर पड़ता है। लेकिन किडनी पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। इसके बारे में लोगों में बहुत ज्यादा अवेयरनेस नहीं है। जिस वजह से कई बार इसे इग्नोर कर दिया है लेकिन बाद में स्थिति गंभीर हो जाती है। इस बीमारी का खतरा किशोरावस्था से लेकर 30 साल तक की उम्र की महिलाओं में ज्यादा होता है। ल्यूपस से पीड़ित लगभग 90 प्रतिशत मरीजज महिलाएं हैं। यह बीमारी आमतौर पर प्रसव के दौरान विकसित होती है। इस लैंगिक असमानता के कारणों को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। लेकिन हार्मोनल और आनुवंशिक कारक इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। ल्यूपस के बारे में जागरूकता बढ़ाने और बीमारी से प्रभावित लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए जागरूकता दिवस को मनाकर समय पर जांच और इलाज के बारे में कहा जाता है।
ल्यूपस के लक्षणः
- स्ट्रेस
- थकान
- सिर दर्द
- तेज बुखार
- बाल झड़ना
- शरीर में दर्द
- जोड़ों का दर्द होना
- सांस लेने में परेशानी
- याददाश्त में कमी होना
- सिर में माइग्रेन जैसे दर्द होना
- एनीमिया (खून की कमी होना)
- नाक और गालों पर लाल रैशेज
- बार-बार गर्भपात (मिसकैरेज) होना
- प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर हाई होना
- रक्त में प्लेटलेट्स की मात्रा कम होते जाना
- चेहरे पर तितली के आकार में दाने या लाल चक्त्ते होना
ल्यूपस का इलाजः
बीमारी का समय से इलाज शुरू हो जाए तो बीमारी नियंत्रित हो जाती है। इस बीमारी में धूप से बचाव करना बहुत जरुरी है। ल्यूपस के मरीजों धूप से बचाव करना चाहिए। इस आटो इम्यून बीमारी में बॉडी सेल्स और टीशूज को प्रभआवित करती है। शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाली सूजन शरीर के अंगों को प्रभावित करती है। सबसे पहले मरीज में नजर आ रहे इन लक्षणों की जांच की जाती है। उसके बाद जरूरी ब्लड टेस्ट किए जाते हैं। जिससे बॉडी में यूरिक एसिड और क्रिटनिन के लेवल का पता लगया जा सके। ब्लड के साथ ही डॉक्टर यूरिन टेस्ट की भी सलाह देते हैं। कंडीशन को देखते हुए किडनी की हेल्थ से जुड़ी जांचें भी होती है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड भी करवाया जाता है। जिससे लंग्स की कंडीशन का पता चल जाता है। बीमारी का लेवल पता लगने के बाद डाइट में जरूरी बदलाव किए जाते हैं। दवाइयां भी दी जाती हैंं। अगर टेस्ट मेंं किडनी में कोई प्रॉब्लम है, तो डायलिसिस करवाने की भी सलाह दी जाती है। ल्यूपस के लिए उपचार का दृष्टिकोण लक्षणों की गंभीरता और प्रभावित अंगों के आधार पर भिन्न हो सकता है। जहां जोड़ों के दर्द और सूजन के लिए नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स दी जाती है। इसी तरह सूजन को कम करने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दवा दी जाती है। त्वचा और जोड़ों के लक्षणों के लिए मलेरिया-रोधी दवाएं दी जाती है। ल्यूपस के गंभीर मामलों के लिए इम्यूनोस्प्रेसिव दवाएं जिनमें गुर्दे, फेफड़े या अन्य अंग शामिल हैं। अगर किसी को संदेह है कि उसे ल्यूपस हो सकता है, तो डॉक्टर से मिलें क्योंकि शीघ्र निदान और उपचार लक्षणों को मैनेज करने और जटिलताओं को रोकने में मदद कर सकता है।