विश्व टीकाकरण सप्ताह बच्चों के साथ वयस्कों के लिए जरूरी टीकाकरण : रश्मि गुप्ता



 

-हर साल अप्रैल के अंतिम सप्ताह 24 से 30 अप्रैल को मनाया जाता है विश्व टीकाकरण सप्ताह

-टीकाकरण बच्चों में वीपीडी और वयस्कों में पोलियो, डिप्थीरिया, टेटनस, सीओवीआईडी-19 आदि सहित अन्य संक्रामक रोगों को रोकने में मददगार

 

नोएडा (अमन इंडिया ) । देश और दुनिया में प्रतिवर्ष लाखों बच्चे और वयस्क हर साल गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं। कई बार इन बीमारियों को टीकाकरण से रोका जा सकता था। बावजूद लोग टीका नहीं लगवाते हैं। लोगों को बीमारियों से बचाने के साथ टीकाकर के प्रति जागरुकता के लिए विश्व टीकाकरण सप्ताह मनाया जाता है।

फेलिक्स अस्पताल की निदेशक और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि गुप्ता का कहना है कि हर साल अप्रैल के आखिरी सप्ताह में 24 से 30 तारीख के बीच विश्व टीकाकरण सप्ताह  मनाया जाता है। इसका उद्देश्य टीके को बढ़ावा देना है। इस वर्ष विश्व टीकाकरण सप्ताह की थीम मानवीय रूप से संभव टीकाकरण के माध्यम से जीवन बचाना है। वायरस या बैक्टीरिया से होने वाली संक्रामक बीमारियां जिन्हें टीकाकरण से रोका जा सकता है। उन्हें वैक्सीन-निवारक रोग (वीपीडी) के रूप में जानते हैं। अभी पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के प्रमुख दोषियों में से एक हैं। टीकाकरण बच्चों में वीपीडी और वयस्कों में पोलियो, डिप्थीरिया, टेटनस, सीओवीआईडी-19 आदि सहित अन्य संक्रामक रोगों को रोकने में मदद कर सकता है। जहां मेनैक्ट्रा वैक्सीन मेनिंगोकोकल रोग से बचाने में मदद करती है। इस वैक्सीन की खुराक नौ से 23 महीने की उम्र के बच्चों को दिया जा सकता है। वैक्सीन की डोज दिलवाने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें। तेज बुखार के साथ सिर दर्द, रैशेज, उल्टी, हर वक्त नींद आना, चिड़चिड़ापन, भूख न खाना इस बीमारी के लक्षण हैं। इसी तरह पोलियो एक ऐसी बीमारी है, जो बच्चे को अपंग बना सकता है। पोलियो लाइलाज बीमारी है क्‍योंकि इसमें होने वाला लकवापन ठीक नहीं हो सकता है। टीकाकरण बीमारी का बचाव है। पोलियो से बचाव के लिए ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) दी जाती है। शिशु के जन्म के आधे घंटे बाद पोलियो ड्रॉप्स पिलाना सही होता है। वैसे जन्म के 15 दिन के अंदर भी उसे पोलियो का पहला टीकाकरण दिया जा सकता है। बच्चों की इम्युनिटी बहुत ही कमजोर होती है। जिस वजह से वो बहुत जल्दी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। समय रहते इनकी पहचान न हो पाने और इलाज में देरी से उनकी जान को खतरा हो सकता है। बच्चों को लगने वाले टीके में एमएमआर बहुत ही जरूरी है। जो उन्हें बुखार, खांसी, गले में दर्द, निमोनिया, भूख न लगना, थकान, नाक का बहना जैसी कई परेशानियों से महफूज रखता है। यह वैक्सीन बच्चों को 11 से 12 साल की उम्र में दी जाती है। इसकी दो खुराक 6 महीने के अंतराल पर दी जाती है। डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस (डीटीपी) है। टिटनेस एक खतरनाक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है। इस दौरान बच्चे को खाने  और पीने से लेकर सांस लेने परेशानी होती है। निमोनिया भी हो सकता है। इस वैक्सीन को लगवाने से इन इन्फेक्शन के होने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। 11 साल की उम्र में ही बच्चे को डीटीपी का टीका लगवा लें। इसी तरह से हेपेटाइटिस-ए छोटे बच्चों में पीलिया बहुत आम समस्या है। लेकिन कई बार इस बीमारी के चलते उनकी जान भी जा सकती है। इस खतरनाक बीमारी से बचाव के लिए उन्हें हेपेटाइटिस-ए का टीका जरूर लगवाएं। हेपेटाइटिस-ए का टीका छह महीने के अंतराल पर दो बार लगाया जाता है। वयस्कों के लिए भी टीकाकरण इसलिए जरूरी है, क्योंकि लगभग 25 प्रतिशत से ज्यादा मृत्यु दर संक्रामक रोगों की वजह से होती है।

 

बीमारी को गंभीर होने से बचाता है टीकाकरण::::

वयस्कों को उनकी उम्र, लाइफस्टाइल, नौकरी, हेल्थ कंडीशन या ट्रिप के चलते नई और कई बीमारियों का खतरा हो सकता है। कुछ रोग जैसे इन्फ्लूएंजा (फ्लू), न्यूमोकोकल रोग वयस्कों में बहुत ही कॉमन है। वयस्कों को फ्लू का टीका जरूर लगवाना चाहिए क्योंकि यह कई गंभीर बीमारियों से बचाने का काम करता है। डायबिटीज, फेफड़ों की बीमारी और हार्ट अटैक की संभावनाओं को भी कम करता है। न्यूमोकोकल वैक्सीन निमोनिया और मेनिनजाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने में मदद करती है। हेपेटाइटिस-बी एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी के लिए कोई खास इलाज भी मौजूद नहीं है। हेपेटाइटिस-बी सिरोसिस और लिवर कैंसर की वजह भी बन सकता है। इस वजह से इसका टीका लगवाना बहुत जरूरी है। सर्वाइकल कैंसर से बचाने वाली वैक्सीन को ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) वैक्सीन कहा जाता है। एचपीवी टीका एचपीवी की वजह से होने वाले मुंह, गले, सिर और गर्दन के कैंसर से भी बचाता है। सभी वयस्कों को पर्टुसिस यानी काली खांसी से बचाने के लिए टीडीएपी की वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। इसके अलावा यह टीका गर्भवती महिलाओं के लिए भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि उन्हें होने वाला कोई भी संक्रमण बच्चे के लिए खतरा पैदा कर सकता है। वैक्सीनेशन द्वारा संक्रमण फैलने के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।