महिलाओं की मानसिक सेहत के लिए सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया और रॉयल राजस्थान फाउंडेशन ने एक नया कैम्पेन खुल के बोलो

महिलाओं की मानसिक सेहत  के लिए  कैम्पेन KhulKeBolo 



दिल्ली (अमन इंडिया ) ।  महिलाओं की मानसिक सेहत  के लिए सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया और रॉयल राजस्थान फाउंडेशन ने एक नया   कैम्पेन KhulKeBolo  

की शुरूआत की है।  यह कैम्पेन  महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात करने और मार्गदर्शन तथा सहयोग मांगने  और महिलाओं के खुलकर बोलने पर आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालेंगे~। इस कैम्पेन के तहत, संगत एनजीओ ने अपना टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर 011-41198666 दिया है, जोकि हर दिन भारतीय समयानुसार सुबह 10 से शाम 6 बजे तक संचालित होता है।  है। यह महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात करने और मार्गदर्शन तथा सहयोग मांगने के लिए दिया गया हेल्पलाइन नंबर है। इस कैम्पेन के दौरान रॉयल राजस्थान फाउंडेशन राजस्थान के 15 गांवों में आरआरएफ के सहयोग से ऑफलाइन वर्कशॉप भी चलाएगा। इनके अलावा, एसपीएनआई और आरआरएफ ने कोटो के साथ भी साझेदारी की है, जो केवल महिलाओं के लिए एक सोशल कम्‍युनिटीज अॅप है – यह प्रभाव को अधिकतम करने के लिए विभिन्न शहरों में महिलाओं के लिए ऑनलाइन समुदाय बनाने और वर्कशॉप की मेजबानी करने के लिए है।



#KhulKeBolo इस कैम्पेन फिल्म में सोनाली कुलकर्णी, समाज के हर वर्ग की महिलाओं की जिंदगी और अनुभवों के बारे में चर्चा करती हुई नजर आ रही हैं। वे इस फिल्म में मुख्य रूप से मानसिक सेहत से जुड़ी चुनौतियों और उनसे लड़ने के लिए आवश्यक जागरूकता पर जोर देती दिख रही हैं।

सोनाली कुलकर्णी, कैम्पेन एम्बेसडर, #KhulKebolo:

“लिंगभेद के बावजूद हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं मौजूद हैं, लेकिन यह जानना महत्वपूर्ण है कि कैसे यह महिलाओं को कई और तरीकों से भी प्रभावित करती हैं। आज भी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना वर्जित है और कई पीड़ित लोगों को परदे के पीछे धकेल दिया जाता है। हर किसी को बिना किसी शर्म के वह जरूरी मदद देने की जरूरत है। #KhulKeBolo जैसी किसी सार्थक चीज का हिस्सा बनकर मुझे खुशी महसूस हो रही है, जोकि इस क्षेत्र में बेहद-आवश्यक बदलाव लाने में मदद करता है।”


भारत में अक्सर महिलाओं को ऐसे अनूठे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों का सामना करना पड़ता है, जोकि उनकी मानसिक सेहत को प्रभावित करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सेहत के कुल बजट का 1% से भी कम मानसिक सेहत के लिए निर्धारित होने के साथ देश में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है। इसकी वजह से उपचार में 70-80% का अंतर नजर आ रहा है। समाज में इस समस्या को लेकर जुड़ी भ्रांतियां और मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे तक ना पहुंच पाना भी देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं के लिए चुनौती बनी हुई है।