फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट ने किया कार्डियोलॉजी के क्षेत्र में टीएवीआई प्रक्रिया के जरिए वाल्‍व रिप्‍लेसमेंट की नॉन-सर्जिकल तकनीक पर

 

दो विश्‍वप्रसिद्ध पुरोधाओं के साथ मिलकर किया उच्‍च स्‍तरीय वार्ता का आयोजन 

टीएवीआई थेरेपी के जनक और फ्रांस के प्रोफे. एलैन क्रिबियर, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्‍ट तथा पद्म भूषण प्रोफे. अशोक सेठ, चेयरमैन, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट ने

 ज्ञान साझा करने के सत्र में की भागीदारी 



नई दिल्‍ली (अमन इण्डिया ) । फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हॉस्‍पीटल, नई दिल्‍ली के लिए यह काफी प्रतिष्‍ठा बढ़ाने वाला अवसर था जिसमें फ्रांस के जाने-माने इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्‍ट तथा ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्‍व रिप्‍लेसमेंट (टीएवीआर), जो कि लोकल एनेस्‍थीसिया के साथ हार्ट वाल्‍व बदलने की नॉन-सर्जिकल प्रक्रिया है, को 2002 में ईजाद करने वाले प्रोफे. एलैन क्रिबियर तथा पद्म भूषण से सम्‍मानित प्रोफे. अशोक सेठ, चेयरमैन, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स ने हिस्‍सा लिया। डॉ अशोक सेठ ने भारत में पहली बार ट्रांसकैथेटर वाल्‍व प्रोसीजर (टीएवीआर) को अंजाम दिया और सर्वाधिक टीएवीआई प्रक्रियाएं संपन्‍न कर चुके हैं। इन दोनों पुरोधाओं ने नॉन-सर्जिकल हार्ट वाल्‍व रिप्‍लेसमेंट थेरेपी और मरीज़ों एवं कार्डियाक साइंस के क्षेत्र के लिए इसके फायदों के बारे में जानकारी दी। टीएवीआई थेरेपी खासतौर से उन मरीज़ों के लिए फायदेमंद है जिनके मामले में सर्जरी का जोखिम ज्‍यादा रहता है, साथ ही यह बुजुर्गों के लिए भी उपयोगी है और यहां तक कि वृद्ध मरीज़ों में  कैल्सिफिक एओर्टिक स्‍टेनॉसिस का मानक उपचार प्रक्रिया बन चुकी है। इसमें कम जोखिम रहता है, त्‍वरित स्‍वास्‍थ्‍यलाभ मिलता है जिसके चलते अस्‍पताल से 2-3 दिनों में छुट्टी मिल जाती है। 


दुनियाभर में हर साल टीएवीआई सर्जरी का आंकड़ा एक लाख से अधिक रहता है। भारत में एक साल में 1500 से अधिक टीएवीआई के मामले दर्ज हाते हैं। इस थेरेपी से एओर्टिक वाल्‍व रोग के उन मरीज़ों को फायदा मिलता है जो वृद्धावस्‍था, अन्‍य संबंधित जोखिमों और कमज़ोर स्‍वास्‍थ्‍य तथा सर्जरी कराने में अक्षमता के चलते पूर्व में सर्जरी नहीं करवा सके थे। आज टीएवीआई से मरीज़ों को ओपन हार्ट सर्जरी से भी काफी अच्‍छे परिणाम मिल रहे हैं। प्रोफे. एलैन क्रिबियर तथा प्रोफे. अशोक सेठ के बीच चर्चा का विषय यही था कि टीएवीआर किस प्रकार पारंपरिक एओर्टिक वाल्‍व सर्जरी से अलग है, किस प्रोफाइल के मरीजों के मामले में टीएवीआर को अपनाया जा सकता है, इस क्षेत्र में कितनी टैक्‍नोलॉजी उन्‍नत हुई है, इंप्‍लांटेशन तथा सुरक्षा प्रक्रियाएं, दीर्घकालिक परिणाम और पोस्‍ट-ऑपरेटिव देखभाल कैसी होनी चाहिए। साथ ही, उन्‍होंने भारत में कार्डियाक केयर के क्षेत्र में भविष्‍य की राह पर भी चर्चा की जहां बड़ी संख्‍या में मरीज़ क्‍वालिटी देखभाल चाहते हैं। 


इस बातचीत के दौरान इस बात पर मुख्‍य ज़ोर दिया गया कि किस प्रकार मेरिल लाइफसाइंसेज़ जैसी स्‍वदेशी कंपनियों ने, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ''मेक इन इंडिया’’ पहल के तहत् विश्‍वस्‍तरीय ट्रांसकैथेटर हार्ट वाल्‍व भारत में तैयार किए हैं जिनका देशभर में बड़े पैमाने पर और विदेशों में भी प्रयोग किया जा रहा है। पहली पीढ़ी के वाल्‍व, माइवाल तथा दूसरी पीढ़ी के वाल्‍व, ऑक्‍टाकॉर ने अंतरराष्‍ट्रीय मानकों तथा वाल्‍व के अनुरूप नतीजे दिए हैं, और इस प्रकार इनके चलते हार्ट संबंधी प्रक्रियाओं के खर्च आसान बने हैं। 


इस अवसर पर, बिदेश चंद्र पॉल, ज़ोनल डायरेक्‍टर, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट, नई दिल्‍ली ने कहा, ''यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि कार्डियोलॉजी के क्षेत्र के दो विश्‍वस्‍तरीय दिग्‍गज आज हमारे संस्‍थान में एक साथ उपस्थित थे और उन्‍होंने अपने योगदानों के अलावा नई टैक्‍नोलॉजी के फायदों तथा टीएवीआई से मरीज़ों को मिलने वाले लाभ पर चर्चा की। प्रोफे. एलॅन क्रिबियर ने वाल्‍व थेरेपी के इलाज को पूरी तरह से बदलकर उसे सर्जिकल से नॉन-सर्जिकल बना दिया है, जो कि आज दुनियाभर में वाल्‍व रिप्‍लेसमेंट का पसंदीदा मानक बन चुका है। उधर, कार्डियोलॉजी के क्षेत्र में डॉ सेठ को किसी परिचय की आवश्‍यकता नहीं है और वह भारत में सर्वाधिक टीएवीआई प्रक्रियाओं को अंजाम दे चुके हैं। फोर्टिस हार्ट इंस्‍टीट्यूट, नई दिल्‍ली हृदय देखभाल के मामले में भारत में उत्‍कृष्‍ट संस्‍थान है और यह हमेशा से ही हृदय की सेहत को बढ़ावा देने के मामले में अग्रणी रहा है। इस प्रकार के सत्रों को प्रमुखता दी जानी चाहिए ताकि शिक्षाविदों, मेडिकल छात्रों, कार्डियोलॉजिस्‍ट्स तथा मेडिकल प्रोफेशनल्‍स को नॉलेज-शेयरिंग का लाभ मिल सके।