कानून मंत्री किरन रिजिजू के श्पांचजन्यश्मे छपे लेख से उनका खतरनाक और चैकाने वाला बयान सामने आया: प्रमोद


 दिल्ली (अमन इंडिया)। प्रमोद तिवारी सांसद राज्य सभा एवं सदस्य केन्द्रीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने कहा है कि आज भारत के विधि एवं न्याय मंत्री  किरन रिजिजू  के श्पांचजन्यश्मे छपे लेख से उनका खतरनाक और चैकाने वाला बयान सामने आया है, जिसमे उन्होने कहा है कि न्यायाधीषों की नियुक्ति मे काॅलेजियम प्रणाली पर सहमत नही है। न्याय का प्रचिलित एवं प्रतिपादित सिद्धांत न्याय होना ही नही चाहिए बल्कि न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। ज्यादातर वाद मे सरकारी एक वादी या प्रतिवादी पक्ष होती है। ऐसी स्थिति मे सरकार द्वारा नामित न्यायाधीष फैसला करेंगे तो उनकी भी वही स्थिति होगी जो आज सरकार द्वारा योग्यता हटाकर पार्टी के प्रति निष्ठा के आधार पर ज्यादातर सरकारी वकीलो का चयन किया जा रहा है और जहाॅ ऐसा चयन हो रहा है उनकी कार्य दक्षता पर स्वयं वरिष्ठ अधिवक्ता सवाल उठा रहे हैं।

 तिवारी ने कहा है कि सरकारे आती- जाती रहती है कानून मंत्री और प्रधानमंत्री बदलते रहते हैं परन्तु न्यायपालिका से जुड़ा हुआ न्यायाधीष पहले दिन से और अपने कार्य दिवस के अन्तिम दिन तक न्यायपालिका से जुड़े अधिवक्ताओं को करीब से देखते हैं और उनकी कार्य दक्षता को बेहतर पहचानते है। आज भी काॅलोजियम संस्तुति करती है फिर केन्द्रीय सरकार से सिफारिष करती है, उनके आचरण एवं उनके चरित्र प्रमाणपत्र सरकार ही देती है तथा केन्द्र सरकार की राय के बाद ही महामहिम राष्ट्रपति को संस्तुति के लिए भेजा जाता है। ऐसी व्यवस्था जो बहुत दिनो से चली आ रही है, उस पर यह कहना कि पहले के न्यायाधीष, प्रमुख न्यायाधीष वरिष्ठ होते थे यह आज के वरिष्ठ न्यायधीषों एवं पूरी न्यायपालिका का अपमान है और अविष्वास है।

 तिवारी ने कहा कि मोदी सरकार के कानून मंत्री का अविष्वास इस ओर इषारा करता है कि क्या सरकार की कुछ मनमानी के प्रति न्यायपालिका के न्याय देने पर सरकार इसे स्वीकार नही कर पा रही है ? अथवा कोई और इरादा है। भारत की न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और उसका मान-सम्मान पूरी दुनिया मे है और बाहर की ओर ही देखना है तो फिर वहा सेवानिृृत्ति की आयु, वेतन, भत्ता और सुविधाऐ बढ़ाने पर विचार करें। यह प्रकरण यदि संसद मे आया तो मैं इसका विरोध करूंगा और इस पर अब तक के स्थापित विधि आयोग की रिपोर्ट पर खुली चर्चा सदन के अन्दर और बाहर चहूंगा। 

एक बात से कोई इन्कार नही कर सकता कि आज भी भारत देष मे अगर अन्याय से पीड़ित कोई व्यक्ति होता है तो वह यही कहता है कि मै न्याय के लिए मा. उच्च न्यायालय से मा. सर्वोच्च न्यायालय तक लडूंगा। यह दिखाता है कि आम जनता का विष्वास न्यायपालिका मे है।

 तिवारी ने कहा कि मै भारत के मानीय न्याय मंत्री से जानना चाहता हूॅ कि क्या वे न्यायपालिका की स्थिति भी उन सरकारी संवैधानिक एजेंसियो की तरह करना चाहते है ? जिनकी कार्य करने की शैली और विष्वसनीयता पर आज प्रष्न वाचक चिह् लग रहे हैं ।