फोर्टिस ओखला नई दिल्ली ने 74 वर्षीय ऐसे वृद्ध मरीज़ का सफलतापूर्वक उपचार किया

 नई दिल्ली (अमन इंडिया)।  फोर्टिस ओखला नई दिल्ली ने 74 वर्षीय ऐसे वृद्ध मरीज़ का सफलतापूर्वक उपचार किया जो अपनी बाईं जांघ हड्डी में ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से हुए एटिपिकल फ्रैक्चर से पीड़ित थे। यह बिना कहीं गिरे हुए फ्रैक्चर के बाद अस्पताल के ओपीडी वॉर्ड में आई थीं। इससे पहले भी उन्होंने कुछ डॉक्टरों से सलाह ली थी जिन्होंने उपचार करने से मना कर दिया था क्योंकि उनका फ्रैक्चर बहुत ही खराब स्थिति में था और उसे ठीक नहीं किया जा सकता था। आशा की अंतिम किरण के तौर पर उन्होंने आखिरकार फोर्टिस हॉस्पिटल में जाने का निर्णय किया। डॉ. कौशल कांत मिश्र, डायरेक्टर- ऑर्थोपेडिक्स एवं जॉइंट रिप्लेसमेंट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला के नेतृत्व में डॉक्टरों ने सफलतापूर्वक सर्जरी की और फ्रैक्चर काफी हद तक कम हुआ। 

मरीज को अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड में लाया गया और यह पाया गया कि उनकी बाईं फीमर में एटिपिकल सबट्रोकैनटेरिक फ्रैक्चर (कूल्हे के पास फ्रैक्चर) होने का पता चला। कुल मिलाकर ऐसे फ्रैक्चर की घटनाएं 1,00,000 में से 15-20 लोगों के साथ ही होती हैं। एटिपिकल फ्रैक्चर एक नई श्रेणी का फ्रैक्चर है जो बिस्फॉस्फोनेट (ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित लोगों को आम तौर पर दी जाने वाली दवा) की वजह से होती है और मरीज़ पिछले चार वर्षों से हर हफ्ते यह दवा ले रही थीं। आम तौर पर कूल्हे के आसपास के हिस्से में इस दवा की वजह से फ्रैक्चर होता है। इस तरह का फ्रैक्चर 25-30 वर्षों पहले नहीं होता है जब इस दवा का इस्तेमाल नहीं होता था। 



इस मामले के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. कौशल कांत मिश्रा, डायरेक्टर - ऑर्थोपेडिक्स एवं जॉइंट रिप्लेसमेंट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला ने कहा, "हमने मरीज़ का ऑपरेशन किया और बाईं तरफ फीमोरल नेलिंग (फीमर की कनाल में खास तौर पर डिज़ाइन की गई मेटल की रॉड डाली गई। यह रॉड फ्रैक्चर के पास से होकर गुज़रती है, ताकि उसे सही जगह पर रखा जाए) की गई। हालांकि, इस फ्रैक्चर को देखते हुए बिस्फॉस्फोनेट के गंभीर इस्तेमाल और एक्स-रे इमेज को देखते हुए हमने पाया कि यह फ्रैक्चर बिस्फॉस्फोनेट के ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से हुआ है। ये दवाएं हड्डियों को मज़बूत करती हैं और उन्हें मिट्टी के बर्तन जैसा बना देती हैं जिसकी वजह से ये आसानी से टूट सकती हैं। इसके अलावा, टूट ठीक होने की हड्डियों की खूबियां भी कम हो जाती हैं।" 

डॉ. मिश्रा ने कहा, "बिस्फॉस्फोनेट की वजह से हुए एटिपिकल फ्रैक्चर के आम मामलों में ठीक होने की दर 97-98 फीसदी तक होती है और फ्रैक्चर के न जुड़ने की दर 2 फीसदी से कम होती है। बिस्फॉस्फोनेट की वजह से होने वाले एटिपिकल फ्रैक्चर में हड्डियों के न जुड़ने की दर 90 फीसदी से ज़्यादा थी जिसकी वजह से ये फ्रैक्चर बहुत ही खतरनाक हो जाते हैं। हमने मरीज़ की सर्जरी की और उन्हें बता दिया कि हड्डियां फिर से जुड़ नहीं सकेंगी। जो रॉड हमने डाली हैं वह टूट जाएगी और उन्हें फिर से हमारे पास आना होगा, इसके बाद फिर से सर्जरी और बोन ग्राफ्टिंग करनी होगी। हालांकि, वह भी काम नहीं आएगा। आखिरकार उन्हें दर्द से तभी राहत मिलेगी जब हम कूल्हा प्रत्यारोपण यानी हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी करेंगे। बोन ग्राफ्टिंग के दौरान आम तौर पर ब्लीडिंग यानी खून निकलता है। हालांकि, जब हमने मरीज़ की बोन ग्राफ्टिंग (एक सर्जिकल प्रक्रिया जिसमें हड्डियों के फ्रैक्चर को ठीक करने के लिए गायब हड्डी की जगह ली जाती है जो बहुत ही मुश्किल होती है) की, तो बिल्कुल भी खून नहीं निकला। ऐसी हड्डी की ग्राफ्टिंग करने का कोई फायदा नहीं होता है और यही वजह है कि हड्डियां जुड़ नहीं पाईं। यह मेरी सलाह है कि बिस्फॉस्फोनेट का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।"

बिदेश चंद्र पॉल, ज़ोनल डायरेक्टर, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, नई दिल्ली ने कहा, "यह कहते हुए मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के पास मुश्किल प्रक्रियाएं और ऑपरेशन करने की विशेषज्ञता और उच्च स्तरीय टैक्नोलॉजी उपलब्ध है। डॉ. कौशल कांत मिश्रा, डायरेक्टर- ऑर्थोपेडिक्स एवं जॉइंट रिप्लेसमेंट के विशेषज्ञ नेतृत्व और मार्गदर्शन में यह सर्जरी सफल रही। मेडिकल टीम ने इस मामले में व्यापक मूल्यांकन किया, उचित देखभाल की और चिकित्सकीय सलाह दी, जिससे यह पक्का किया जा सका कि मरीज़ की स्थिति बिगड़ने न पाए और उनकी तबियत में सुधार हो। अत्यधिक जोखिम वाली इस प्रक्रिया को शानदार तरीके से पूरा करने के लिए मैं डॉक्टरों की टीम की सराहना करता हूं।"

बिस्फॉस्फोनेट, ऑस्टियोपोरोसिस के मामलों में आम तौर पर दी जाने वाली दवा है जिसे प्राथमिक तौर पर आखिर स्टेज के कैंसर के मरीज़ों के लिए बनाया गया था जिनकी हड्डियों तक ट्यूमर पहुंच जाता है और उनके 2-3 वर्षों तक जीवित रहने की उम्मीद होती है। इसके बाद चिकित्सकों ने ऑस्टियोपोरोसिस के लिए इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया है जिसकी वजह से बिल्कुल नए तरह का फ्रैक्चर सामने आया, खास तौर पर यह फ्रैक्चर कूल्हे की हड्डियों में होता है जिसे "एटिपिकल फ्रैक्चर" कहा जाता है। आम तौर पर हड्डियां प्लास्टिक की तरह होती है जिनमें कुछ लचीलापन होता है, लेकिन बिस्फॉस्फोनेट उसे एक मज़बूत ढांचे में बदल देता है और वह मिट्टी के बर्तन की तरह टूट सकता है। यूएस-एफडीए ने बिस्फॉस्फोनेट के गलत प्रभावों को लेकर चेतावनी जारी की है। ध्यान देने की बात यह है कि पैराथाइरॉयड हार्मोन (टेरीपैराटाइड) ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार का स्वाभाविक तरीका है जिसे इंसुलिन की तरह रोज़ाना इंजेक्शन के तौर पर लिया जाता है। लेकिन कई मरीज़ टेरीपैराटाइड का हर दिन का इंजेक्शन लेने के डर की वजह से बिस्फॉस्फोनेट को दवा के तौर पर या सालाना इंजेक्शन का विकल्प चुनते हैं।