एक सदी से भी अधिक पुरानी सर्जरी तकनीक का इस्तेमाल कर
इराकी मरीज़ का पैर कटने से बचाया
नई दिल्ली (अमन इंडिया)। फोर्टिस हॉस्पीटल वसंत कुंज के डॉक्टरों ने सड़क दुर्घटना में शिकार 40-वर्षीय एक मरीज़ की क्रॉस-लैग फ्लैप सर्जरी कर उसका पैर कटने से बचा लिया है। उल्लेखनीय है कि यह सर्जरी करीब सौ साल से अधिक पुरानी है और इसका इस्तेमाल इसलिए किया गया क्योंकि मरीज़ की स्थिति इतनी खतरनाक थी कि अधिक आधुनिक और नई तकनीकों को लागू नहीं किया जा सकता था।
इस मरीज़ ने पिछले आठ महीनों के दौरान इराक में भी तीन बार सर्जरी करवायी थीं जो असफल रही थीं। इसके बाद, उन्हें फोर्टिस लाया गया जहां बाएं घुटने का जोड़ अपने मूल स्थान से काफी हटा हुआ था और उसमें गंभीर संक्रमण के बाद मवाद भी बह रहा था। डॉ धनंजय गुप्ता, डायरेक्टर, ऑर्थोपिडिक्स एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी तथा डॉ रश्मि तनेजा, डायरेक्टर, प्लास्टिक एंड रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने मरीज़ की जांच की। इस जांच से पता चला कि मरीज़ के प्रभावित पांव में कई चोटों के बाद कोई भी रक्तवाहिका बाकी नहीं बची थी, जो कि इन दिनों प्रयोग की जाने वाली रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के लिए आवश्यक हैं।
ऐसे में डॉक्टरों ने क्रॉस-लैग फ्लैप सर्जरी का फैसला लिया, इस तकनीक का मेडिकल साहित्य में पहली बार 1854 उल्लेख मिलता है। आमतौर पर, फ्लैप सर्जरी में डोनर साइट से टिश्यू को निकाला जाता है और उसे रेसिपिएंट साइट पर लगाया जाता है जहां ब्लड सप्लाई बरकरार होती है। उस जमाने में पांव में सॉफ्ट टिश्यू के विकारों को दूर करने के लिए रीकंसट्रक्शन ही गोल्ड स्टैंडर्ड था। लेकिन आगे चलकर अत्याधुनिक माइक्रोवास्क्युलर तकनीकों का चलन बढ़ने, जो कि डॉक्टरों को क्षतिग्रस्त रक्तवाहिकाओं एवं स्नायुओं की मरम्मत करने में समर्थ बनाती हैं, के बाद इसे भुला दिया गया।
इस बारे में और जानकारी देते हुए, डॉ धनंजय गुप्ता, डायरेक्टर, ऑर्थोपिडिक्स एंड ज्वाइंट रीप्लेसमेंट सर्जरी, फोर्टिस वसंत कुंज ने कहा, ''हमने काफी सोच-विचार के बाद, इस जटिल प्रक्रिया को अपनाने का फैसला किया जिसमें कई चरणों में सर्जरी की जाती है। उनका इलाज पांच सप्ताह चला और नतीजे संतोषजनक रहे हैं। फिलहाल, मरीज़ को पैर को सॉफ्ट टिश्यू से कवर किया गया और किसी किस्म का इंफेक्शन नहीं हुआ है। मरीज़ को दोबारा चलने-फिरने की सलाह दी गई है और फिलहाल वे फिजियो रीहेबिलिटेशन से गुजर रहे हैं। हमें आशा है कि अगले तीन महीनों में जब उनका फ्रैक्चर हील हो जाएगा तो वह फिर से अपने पैरों पर पूरा बोझ डालकर चल सकेंगे। हमने भविष्य में, यदि आवश्यकता हुई तो, अतिरिक्त प्रक्रियाओं की योजना तैयार की है।''
डॉ रश्मि तनेजा, डायरेक्टर, प्लास्टिक एंड रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी, फोर्टिस हॉस्पीटल वसंत कुंज ने कहा, ''यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि मरीज़ का इंफेक्शन गंभीर था और बोन क्वालिटी भी काफी खराब थी। वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के भी मरीज़ थे। मरीज़ के दोनों पैरों को एक-दूसरे पर ओवरलैप करना था, और उन्हें तीन हफ्तों तक इसी पॉजिशन में रखा गया। यह इस तरह से किया गया कि उनके दोनों पैरों के बीच कोई दबाव न हो और साथ ही, फ्लैप भी नहीं मुड़े। ऐसे में भरपूर प्लानिंग तथा मरीज़ के भी पूरे सहयोग की आवश्यकता थी। हमने शुरू में सोच था कि माइक्रोवास्क्युलर फ्री फ्लैप रीकंसट्रक्शन करने का विचार किया, जिसमें पीठ या पेट से ब्लड वैसल्स सहित मांसपेशियों और त्वचा को लिया जाता है, लेकिन मरीज़ के पैर में ब्लड वैसल्स सुरक्षित नहीं होने की वजह से उन्हें यह विचार छोड़ना पड़ा था।''
श्री यशपाल रावत, फैसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल, वसंत कुंज ने कहा, ''यह हम सभी के लिए गर्व का विषय होता है मरीज़ और उनके परिजन हमारी सेवाओं से खुश तथा संतुष्ट होते हैं। यह एक अनूठा मामला था जिसमें काफी पुरानी सर्जिकल तकनीक का इस्तेमाल इलाज के लिए किया गया। मैं डॉ धनंजय गुप्ता, डायरेक्टर, ऑर्थोपिडिक्स एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी तथा डॉ रश्मि तनेजा, डायरेक्टर, प्लास्टिक एंड रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के नेतृत्व में काम करने वाली डॉक्टरों की टीम की सराहना करता हूं जिन्होंने इस जटिल मामले में उपचार के लिए लीक से हटकर प्रयास किया और क्लीनिकल उत्कृष्टता तथा मरीज़-केंद्रित देखभाल के लिए प्रतिबद्धता दिखायी।''