भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिला

 भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिला: एफओजीएसआई ने आरएच प्रोफिलैक्सिस के लिए एंटी-डी-इम्युनोग्लोबुलिन के उपयोग के लिए मुख्य दिशा-निर्देश जारी किए


....आरएच-निगेटिव माताओं और नवजात बच्चों की बेहतर होगी सेहत...

दिल्ली (अमन इंडिया)।  भारत में ऑब्स्ट्रेटिक एंड गायनोकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई) ने भ्रूण और नवजात शिशुओं (एचएफडीएन) में हेमोलिटिक रोग के इलाज के लिए मुख्य दिशा-निर्देश जारी किए। एफओजीएसआई की कॉन्फ्रेंस में जारी किए गए दिशा-निर्देश महिलाओं की सुरक्षित डिलिवरी सुनिश्चित कर उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस दिशा-निर्देश का उद्देश्य गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के समय एचडीएफएन को रोकने के लिए डॉक्टरों को इम्यूनोप्रोफिलैक्सिस के रूप में एंटी-डी इम्यूनोग्लोबिन के प्रयोग पर व्यावाहरिक दिशा-निर्देश देना है। इससे डी एंटीजन को लेकर संवेदनशीलता को रोकने में मदद मिलेगी।


गर्भावस्था के दौरान रीसस सी (आरएच) डी-निगेटिव महिलाएं, जो आरएच-डी पॉजिटिव भ्रूण धारण करती है, के सामने रोग प्रतिरोधक एंटी-डी एंटीबॉडीज बनने की प्रक्रिया के दौरान संवेदनशीलता का बेहद खतरा रहता है। दंपति की पहली संतान इससे बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होती, लेकिन अगर उनका दूसरा बच्चा आरएच पॉजिटिव हुआ तो परेशानी हो सकती है। पहले बच्चे को जन्म देने के दौरान विकसित एंटीबॉडीज आरएच फैक्टर से पीड़ित दूसरे बच्चे की लाल रक्त कोशिकाओं (आऱबीसी) पर हमला कर देती है, जिसमें आरएच फैक्टर होता है। इससे आरबीसी ब्रेकडाउन होता है। यह हीमोलिसिस कहलाता है, जिसमें महिलाओं में एनीमिया और हार्ट फेलियर समेत अन्य समस्याएं होती हैं।  



एफओजीएसआइ की प्रेसिडेंट और विशेषज्ञ समिति की प्रमुख डॉ. शांता कुमारी ने कॉन्फ्रेंस में कहा, “भारत में करीब 5 फीसदी महिलाएं आरएच-निगेटिव होती हैं। एक अस्पताल आधारित स्टडी में कहा गया कि आरएच-डी पॉजिटिव महिलाओं में आरएच एलोइम्यूनाइजेशन क्रमश: 10.7 और 10.2 फीसदी दर्ज किया गया। विज्ञान में प्रगति होने के साथ हम महिलाओं और नवजात शिशुओं की अच्छी सेहत को बढ़ावा दे सकते हैं। रिसर्च से यह पता चलता है कि प्रोफिलैक्सिस के साथ एंटी डी-इम्युनोग्लोबिन का इस्तेमाल आरएच-निगेटिव माताओं में दूसरी गर्भावस्था के दौरान संवेदनशीलता के खतरे को कम करती है। चाहे बच्चे और मां का एबीओ स्टेटस कुछ भी हो।


उन्होंने कहा, “हालांकि एंटी-डी की उपलब्धता और इस्तेमाल के बावजूद आरएच बीमारी का बोझ बढ़ता जा रहा है। यह इस रोग से बचाव के लिए दिशानिर्देश का पालन किए जाने के महत्व को दर्शाता है। डॉक्टरों को इसके लिए गाइडलाइंस जारी किया जाना बेहद जरूरी है। इन दिशा-निर्देशो में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की देखभाल के लिए एक फ्लोचार्ट बनाने की सिफारिश गई है, जिससे प्रोफिलैक्सिस के साथ एंटी डी-इम्युनोग्लोबिन के प्रयोग संबंधी दिशा-निर्देश हों। हमें विश्वास है कि इससे गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की बेहतर देखभाल और स्वस्थ बच्चे के जन्म को सुनिश्चित किया जाएगा।