राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का बढ़ रहा बजट - आरटीआई


         भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने रंजन तोमर को दिया जवाब 


नोएडा (अमन इंडिया)। ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम ( एन इस ए पी ) प्रभाग द्वारा पिछले बारह वर्षों में कितना व्यय आम जनता के भले हेतु किया है उसका ब्यौरा समाजसेवी एवं अधिवक्ता श्री रंजन तोमर ने एक आरटीआई के माध्यम से श्री रंजन तोमर को दिया है।  


राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) एक कल्याण कार्यक्रम है जो ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित है। यह कार्यक्रम ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है। एनएसएपी भारत के संविधान में स्थापित राज्य नीति के निदेशात्मक सिद्धांतों की पूर्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है, जो राज्य को अपने साधनों के भीतर कई कल्याण उपायों के लिए कार्य करने के लिए आज्ञा देता है। विशेष रूप से, भारत के संविधान एन के अनुच्छेद 41 में राज्य को बेरोजगारों, बुढ़ापे, बीमारी और अक्षमता के मामले में अपने नागरिकों को सार्वजनिक सहायता प्रदान करने और इसकी आर्थिक क्षमता और विकास के अनुकरण के भीतर अवांछित इच्छा के अन्य मामलों में सार्वजनिक सहायता प्रदान करने का ईएनटी को निर्देश दिया गया है। 


यह कार्यक्रम 15 वीं अगस्त 1 995 को केन्द्रीय प्रायोजित योजना (सीएसएस) के रूप में पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका / केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से लक्षित किया गया था।


जवाब के अनुसार 2010 -11 में जहाँ 13373 . 79 लाख रुपए अर्थात तकरीबन 133 करोड़ रुपए इस योजना में खर्च किये गए थे वहीँ 2011 -12 में यह आंकड़ा 2636 .37 लाख रुपए खर्च हुए ,जबकि 2012 -13 में 12320 . 15 लाख रुपए , 2013 -14 में 8012 . 95 लाख रुपए , 2014 -15 में 26966 . 98 लाख , 2015 -16 में 11403. 72 लाख रुपए , 2016 -17 में 27053. 78 लाख रुपए , 2017 -18 में 25835 . 14 लाख रुपए , 2018 -19 में 28953 . 07 लाख रुपए , 2019 -20 में 30542 . 04 लाख रुपए वहीँ 2020 -21 में 20123 . 49 लाख रुपए और 2021 -22 में 23739 . 35 लाख रुपए यानि तकरीबन 237 करोड़ रुपए खर्च किये , इससे यह ज्ञात होता है की सरकार द्वारा लगातार सामाजिक सहायता का बजट बढ़ाया जा रहा है , ऐसे में जनता के उस छोर तक उसे पहुंचाने की आवश्यकता है जो सबसे ज़्यादा इससे वंचित है।