कोविड चिकित्सालय सैक्टर-39 में आयुर्वेदिक विज्ञान समायोजित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम



गौतम बुद्ध नगर (अमन इंडिया)। जनपद में विश्व तम्बाकू निषेध माह कार्यक्रम के तहत कोविड चिकित्सालय सैक्टर-39 में


वर्तमान समय में आयुर्वेदिक औषधि एवं उपचार की महत्वता देखते हुए जनपद के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयुर्वेदिक विज्ञान समायोजित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम किये जा रहे आयोजित।

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी गौतमबुद्धनगर ने जानकारी देते हुये बताया कि आज डा० सुनील कुमार शर्मा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं डा0 सुनील दोहरे, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व डा0 श्वेता खुराना जनपद सलाहकार के नेतृत्व में जनपद में विश्व तम्बाकू निषेध माह कार्यक्रम के तहत कोविड चिकित्सालय सैक्टर-39 में वर्तमान समय में आयुर्वेदिक औषधि एवं उपचार की महत्वता देखते हुए जनपद के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयुर्वेदिक विज्ञान समायोजित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। डा0 श्वेता खुराना जनपद सलाहकार के द्वारा प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ किया करते हुए बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा प्रत्येक वर्ष तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है जिसका इस वर्ष "Tobacco: Threat our environment" थीम है। इसी के तहत गैर संचारी रोग कार्यक्रम के बारे में जानकारी जैसे-तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम, मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, डिफनेस कार्यक्रम आदि के बारे में जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि यदि जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं में निम्न स्तर से उच्च स्तर पर रेफरल सिस्टम डवलप कर दिया जाये तो स्वास्थ्य सुविधा का लाभ जन मानस को अत्यधिक मिलने लगेगा। जिस प्रकार से पूर्व के भाँति आयुर्वेद विज्ञान का चलन था उसी प्रकार वर्तमान समय में आयुर्वेद विज्ञान की भी अत्यधिक आवश्यकता है।

  डा0 भोज राज ने बताया कि जब हम निरोग रहे तथा अपने आप में सुखस्वरूप आत्मा में स्थित रहे, तभी स्वस्थ कहलाते है। स्वास्थ्य का संबंध शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक लाभ से है, अर्थात् वही मनुष्य स्वस्थ है, जिसके शरीर में शारीरिक रूप से कोई रोग ना हो, कोई मानसिक द्वन्द न हो। वह समाज का अभिन्न अंग हो, और आध्यात्मिक रूप से वह स्वस्थ हो, अर्थात् वह ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास रखता हो। शारीरिक स्वास्थ्य क्या है? मानसिक स्वास्थ्य व आध्यात्मिक स्वास्थ्य कहा है? इसे इस प्रकार समझा जा सकता है, शारीरिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य को आधुनिक विज्ञान द्वारा इस प्रकार परिभाषित किया गया, स्वस्थ व्यक्ति वह है, जिसकी एक एक कोशिका तथा ऊतक से लेकर एक एक अंग पूरी तरह कार्य कर रहा हो। विभिन्न तन्त्रों के बीच उसका समायोजन हो तथा मानसिक रूप से भी कोई विकृति ना हो। शारीरिक रूप से स्वस्थ वह व्यक्ति है, जिसके शरीर में कोई रोग और कोई व्याधि ना हो मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए मनोवैज्ञानिक पी0बी0 ल्यूकन ने लिखा है, मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है, जो स्वयं सुखी है। अपने पड़ोसियों के साथ शान्तिपूर्वक रहता है। अपने बच्चों को स्वस्थ नागरिक बनाता है, और इन आधारभूत कर्तव्यों को करने के बाद भी जिसमें इतनी शक्ति बच जाती है कि वह समाज के हित में कुछ कर सके। सामाजिक स्वास्थ्य, सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है, जो समाज के साथ जुड़ा रहे, व्यवहारिक हो तथा बड़ों का सम्मान करता हो, सभी के साथ आत्मीयता रखता हो। दुर्गति में पड़े लोगों की रक्षा करता हो तथा वह किसी की भी आत्मा को ठेस नहीं पहुँचाता हो। आध्यात्मिक स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है, जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य, ईष्र्या, भय, प्रमाद, चिंता आदि से दूर रहता हो व स्वयं के सभी कर्मों को प्रभु को अर्पित कर देने वाला हो, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हो। इस प्रकार अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना ही समग्र स्वास्थ्य है। जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, बौद्धिक स्वास्थ्य, स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य आदि भी शामिल है। स्वास्थ्य के सम्बन्ध में आयुर्वेद के ग्रन्थों में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं दी गयी है जो निम्न प्रकार से हैं सुश्रुत संहिता के अनुसार, इस प्रकार सुश्रुत संहिता की उपरोक्त परिभाषा के अनुसार स्वस्थ पुरुष के लक्षण निम्न प्रकार से समझे जा सकते हैं स्वस्थ पुरुष वह है- जिसके तीनों दोष (वात-पित्त-कफ) सम हो। जिसकी धातुए सम हो, न अधिक वृद्धि हो ना कमी हो। अग्नियाँ सम हों, जठराग्नि प्रदीप्त हो। मल (स्वेद मूत्र पुरीष) का उचित मात्रा में शरीर में बना रहना आवश्यक हो तथा उचित मात्रा व समय में निष्कासन होता हो। मन, इन्द्रियां प्रसन्न हो, नियंत्रित हो तो आत्मा स्वयं ही प्रसन्न रहेगी। अन्नाभिलाषी-भूख खुलकर लगना, परिपाक-भोजन का पाचन समय पर हो जाना, विण्मूत्रवात का यथोचित प्रवाह-मलों का निष्कासन समय पर निश्चित मात्रा में, शरीर में लघुता-शरीर भारीपन (आलस्य आदि) का ना होना, समाग्निता-अग्नि का सम होना, सुप्रसन्द्रियत्वं-मन तथा इन्द्रिया प्रसन्न हो। डा0 भोज राज ने बताया कि विश्व तम्बाकू निषेध माह के रूप में इस वर्ष मनाया जा रहा है। इसी के क्रम में उन्होंने बताया कि तम्बाकू दो प्रकार के होते है जैसे धुम्रपान एवं धुम्ररहित तथा दो प्रकार से सेवन किया जाता है। धुम्रपान एवं धुम्ररहित। तम्बाकू से पीड़ित व्यक्ति यदि प्रति दिन ध्यान, योगा तथा जड़ी बूटियों का प्रयोग करें जो वह तम्बाकू के तलव से बच सकता है। यदि किसी भी व्यक्ति को तम्बाकू की तलब है तो वह व्यक्ति जनपद में संचालित उन्मूलन केन्द्र पर जा कर काउंसलिंग ले सकता है। तम्बाकू के तलब से बचने के लिए कुछ घरेलू उपाय है जैसे- अदरक, नमक, शहद के पेस्ट का प्रयोग।*

  *उन्होंने बताया कि ब्रहमी अस्वगंधा का चाय एवं अजवाईन, चबाकर, लवंग, दुध आदि का प्रयोग से तम्बाकू के तलब से बचा जा सकता है। दिनचर्या प्रातः काल ब्रहममुहूर्त में उठने से लेकर संध्या काल तक किये जाने वाले ऐसे सुव्यवस्थित कर्म जिससे स्वास्थ्य उन्नत अवस्था में बना रहता है। शरीर में बल व दीघार्यु की प्राप्ति होती है, दिनचर्या के अन्तर्गत आते है। दिनचर्या के अन्तर्गत निम्नलिखित कर्म आते है आत्मबोध की साधना, ब्रहममुहूर्त में उठ कर यह साधना की जाती है। ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण तथा कृतज्ञता का भाव तथा पूरे दिन के लिए मार्गदर्शन की कामना इस साधना में की जाती है। भूनमन- पृथ्वी पर स्पर्श के लिए क्षमा याचना तथा साथ ही पृथ्वी तत्व से ऊर्जा लेने का विधान किया गया है। ऊषापान-प्रातः शौच जाने से पूर्व ऊषापान का विधान है। ऊषापान में शीतोदक (ठण्डा) जल ही पीना चाहिए, जिससे पाचन संस्थान को बल मिलता है। शोच- ऊषापान के पश्चात शौच का क्रम आता है। सूर्योदय से पूर्व ही शौच जाना चाहिए। दन्त धावन-प्राचीन काल में दन्तधावन के लिए नीम तथा बबूल आदि की लकड़ी का प्रयोग बताया गया था। जिह्वा निर्लेखन-दन्तघावन के पश्चात जिह्वा निर्लेखन का क्रम आता है। इससे जिह्वा की अच्छी तरह सफाई हो जाती है। सार व्यायाम करना चाहिए तथा जो समर्थ ना हो उन्हें चक्रमण (चहलकदमी) करना चाहिए। यह शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य एवं मानवोचित सौन्दर्य का कारक है। आयुर्वेद में अभ्यंग को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अभ्यंग विशेष रूप से वातहर तथा वेदनाहर है।