फेलिक्स अस्पताल ने नेशनल रुमेटोलॉजिकल( गठिया ) अवेयरनेस महीने में चला जागरूकता अभियान चलाया



नोएडा(अमन इंडिया)। नोएडा के फेलिक्स अस्पताल में रुमेटोलॉजिकल डिजीज के बढ़ते चलन को देखते हुए रुमेटोलॉजिकल अवेयरनेस टॉक एवं कैंप का आयोजन किया गया । कैंप में ३० लोगों ने मुफ्त रुमेटोलॉजी परामर्श ली | जिसमें 7 लोगों मैं यूरिक एसिड बड़ा हुआ पाया गया और 6 लोगों में अलग -अलग प्रकार की गठिया की समस्या का पता लगा | साथ ही इन्हे मुफ्त डाइट परामर्श और फिजियोथेरेपी परामर्श भी दी गयी | डॉ किरण सेठ (रेमेटोलॉजिस्ट ) का कहना है यह बीमारी वर्ष-2025 तक मधुमेह को पीछे छोड़ देगी और सबसे अधिक होने वाली बीमारी बन जाएगी। इसलिए जरूरी है कि लोग अभी से सचेत हो जाएं। बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए भारतीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन (आईआरए) ने अप्रैल महीने को रूमेटोलॉजी जागरूकता माह के रूप में घोषित किया है।

यह एक ऑटो इम्युन बीमारी है जिसमें , इम्युन सिस्टम शरीर के स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगता है। इससे शरीर के अंगों में बहुत ज्यादा सूजन पैदा हो जाती है जो जोड़ों में दर्द और सूजन का कारण बनती है। अगर समय पर रूमेटोलॉजिकल रोगों की पहचान कर उचित इलाज शुरू कर दिया जाए तो अपंगता और अंगों के विफल होने जैसी समस्याओं को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन लोग आमतौर अब भी रुमेटोलॉजिकल डिजीज और हड्डी रोग की बीमारियों के अंतर नहीं समझ पाते। रुमेटोलॉजिकल डिजीज का शिकार लोगों को रुमेटोलॉजिस्ट के पास जाकर ही इलाज कराना चाहिए, क्योंकि कई बार डॉक्टर भी बीमारी को जल्द नहीं पकड़ पाते। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। आर्थिक नुकसान के साथ ही मरीजों को लंबे वक्त तक बीमारी परेशान करती है। कई लोग अब भी इसे एक उम्र के बाद होने वाली बीमारी मानकर इलाज कराने से कतराते हैं जो जीवन को बेहद कठिन और दर्दनाक बना देता है। भारत में इन रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या कुल आबादी की 2.5 प्रतिशत है।


फेफेड़ों और दिल पर भी होता है असर.....

डॉक्टर किरण सेठ के अनुसार इस बीमारी असर फेफड़ों, दिल और किडनी, धमनिया, चमड़ी, आंखों पर भी होता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं इस बीमारी का ज्यादा शिकार होती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं का इससे प्रभावित होना भारतीय समाज में तो और भी परेशानी वाली बात है क्योंकि पूरे परिवार पर इसका असर होता है।