राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा संस्‍थानों ने भारत में एनसीडी और मोटापा संकट से निपटने के लिए फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल्‍स

 महत्‍वपूर्ण राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा संस्‍थानों ने भारत में एनसीडी और मोटापा संकट से निपटने के लिए फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल्‍स (एफओपीएल) पर त्‍वरित कार्रवाई करने का किया आग्रह 


 


नई दिल्‍ली(अमन इंडिया)। ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्‍स), पोस्‍ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर), इंस्‍टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइंसेस, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रीवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम), इंडियन पब्लिक हेल्‍थ एसोसिएशन (आईपीएचए), इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्‍स और एपीडेमिओलॉजिकल फाउंडेशन ऑफ इंडिया (ईएफआई) के लीडर्स एवं अन्‍य शीर्ष चिकित्‍सा संस्‍थानों के प्रमुख डॉक्‍टर्स ने अनिवार्य फ्रंट-ऑफ-पैक फूड लेबल (एफओपीएल) के लिए त्‍वरित कार्रवाई करने का आव्‍हान किया है। 13.5 करोड़ लोगों में मोटापा और गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण मौत में वृद्धि होने के साथ, भारत हानिकारक भोजन के विनाशकारी प्रभाव का सामना कर रहा है। पैक्‍ड जंक फूड जो हानिकारक आहार का एक प्रमुख स्रोत है, दुनियाभर में किसी भी अन्‍य जोखिम की तुलना में अधिक मौतों के लिए जिम्‍मेदार है और मोटापा, टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग (सीवीडी) और कैंसर का एक प्रमुख कारण है। उच्‍च मात्रा में शुगर, सोडियम और सैचुरेटेड फैट, जो मोटापा महामारी और एनसीडी के प्रसार में एक प्रमुख योगदानकर्ता हैं, वाले अल्‍ट्रा-प्रोसेस्‍ड खाद्य पदार्थों की बाजार में तेजी से बढ़ती उपलब्‍धता का हवाला देते हुए, भारत के शीर्ष चिकित्‍सा विशेषज्ञों ने एक प्रभावी एफओपीएल को लागू करना समय की जरूरत बताया है। 


 


एम्‍स ऋषिकेश द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में, एम्‍स, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्‍स, इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंसेस, पीजीआईएमईआर, आईपीएचए और अन्‍य चिकित्‍सा संस्‍थानों के राष्‍ट्रव्‍यापी नेटवर्क के विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया है कि यदि भारत नमक, चीनी, सैचुरेटेड फैट के लिए एक वैज्ञानिक कट-ऑफ सीमा लागू करता है और जैसा चिली, मैक्सिको और ब्राजील देशों में हुआ उस तरह डिब्‍बा बंद उत्‍पादों पर स्‍पष्‍ट एवं सरल चेतावनी लेबल को अनिवार्य बनाता है तो लाखों लोागें की जान बचाई जा सकती है।


 


मुख्‍य भाषण देते हुए, डा. रवि कांत, निदेशक, एम्‍स ऋषिकेश ने कहा, “एक कठोर और प्रभावी एफओपीएल भारत के लिए एक प्रमुख सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य प्राथमिकता है। भारतीय चिकित्‍सा समुदाय इस महत्‍वपूर्ण नीतिगत उपाय के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है, जो हजारों भारतीय जीवन को बचाने का काम करेगा।”


 


लगभग 58 लाख लोग या प्रत्‍येक 4 भारतीय में से एक 70 साल की उम्र तक पहुचंने से पहले ही एनसीडी से मरने के जोखिम पर हैं। भारत में कोविड-19 की दूसरी घातक लहर से यह पता चल चुका है कि एनसीडी भी हमारी स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली पर संक्रमित बीमारियों के बोझ को बढ़ाने में योगदान करता है, जिससे अस्‍पताल मरीज देखभाल की अचानक बढ़ी मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं। पैक्‍ड और अर्ल्‍टा प्रोसेस्‍ड फूड के परिणामस्‍वरूप, खराब आहार भारत के रोग बोझ में इस क्रमिक महामारी विज्ञान बदलाव एक प्रमुख वजह है। डा. सुनील गर्ग, अध्‍यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रीवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) के अनुसार, “मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग या कैंसर जैसी सभी बीमारियां अत्‍यधिक एनर्जी और खराब पोषक तत्‍वों से भरपूर खाद्य पदार्थों एवं पेय पदार्थों के अत्यधिक सेवन से जुड़ी हैं। दुनियाभर में, कई देश इस बात को स्‍वीकार कर रहे हैं कि उपभोक्‍ताओं को उनके स्‍वास्‍थ्‍य अधिकार के एक हिस्‍से के रूप में इन उत्‍पादों के बारे में सटीक स्‍वास्‍थ्‍य जानकारी हासिल करने का अधिकार है। एक खाद्य उत्‍पाद के बारे में समझ से परे या भ्रामक जानकारी की वजह से उनके सामने बिना जानकारी वाले विकल्‍प चुनने का जोखिम होता है जो अधिक वजन बढ़ने, मोटाना और अन्‍य आहार-संबंधित बीमारियों की वजह बनते हैं।”


 


फ्रंट-ऑफ-पैकेज चेतावनी लेबलिंग स्‍वस्‍थ जीवन को बढ़ावा देने के लिए एक व्‍यापक रणनीति का प्रमुख घटक है, क्‍योंकि यह उपभोक्‍ताओं को त्‍वरित, स्‍पष्‍ट और प्रभावी तरीके से ऐसे उत्‍पादों की पहचान करने में सक्षम बनाता है, जो भारत में एनसीडी बोझ से जुड़े चिंताजनक पोषक तत्‍वों से भरपूर हैं। भारत राष्‍ट्रीय पोषण माह का आयोजन कर रहा है और संयुक्‍त राष्‍ट्र खाद्य शिखर सम्‍मेलन का नेतृत्‍व कर रहा है, ऐसे में इन “चिंताजनक पोषक तत्‍वों” के अत्‍यधिक सेवन पर पहले से कहीं अधिक ध्‍यान केंद्रित किया जाना चाहिए। जब देश कोविड-19 महामारी से तबाह हो रहे थे, उस दौरान भी खाद्य और पेय उद्योग ने अस्‍वास्‍थ्‍यकार, अल्‍ट्रा-प्रोसेस्‍ड खाद्य एवं शर्करा युक्‍त पेय के अपने बाजार का विस्‍तार किया। यूरोमीटर अनुमान के मुताबिक, भारत में, अल्‍ट्रा-प्रोसेस्‍ड खाद्य पदार्थों की बिक्री 2005 में 2किग्रा प्रति व्‍यक्ति से बढ़कर 2019 में 6 किग्रा प्रति व्‍यक्ति हो गई और 2024 तक इसके बढ़कर 8 किग्रा प्रति व्‍यक्ति हो जाने का अनुमान है। इसी प्रकार, पेय पदार्थों की बिक्री, जो 2005 में प्रति व्‍यक्ति 2 लीटर से कम थी, बढ़कर 2019 में लगभग 8 लीटर प्रति व्‍यक्ति हो गई और 2024 में इसके बढ़कर 10 लीटर प्रति व्‍यक्ति होने का अनुमान है।  


 


डा. संजय राय, अध्‍यक्ष्‍ज्ञ, इंडियन पब्लिक हेल्‍थ एसोसिएशन (आईपीएचए), ने जोर देते हुए कहा कि, “सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य पर एक सकारात्‍मक प्रभाव डालने के लिए एक एफओपीएल वास्‍तव में एक सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है, इसके सही प्रारूप का चयन भी काफी महत्‍वपूर्ण होता है। पूरी दुनिया से जुटाए गए साक्ष्‍य एफओपीएल की चेतावनी लेबल प्रणाली की ओर इशारा करते हैं- जैसा कि चिली में “हाई इन” चेतावनी चिन्‍ह को अपनाया गया है। ये व्‍याख्‍यात्‍मक और प्रत्‍यक्ष लेबल स्‍वस्‍थ भोजन विकल्‍पों का समर्थन करने में सबसे अधिक प्रभावी होते हैं। वे उत्‍पाद में सुधार करने को प्रोत्‍साहित करने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं। प्रमाणों को देखते हुए, हमें अब और देर किए बगैर इन पोषक तत्‍वों पर आधारित लेबल को अपनाने पर विचार करना चाहिए।”


 


इसके अतिरिक्‍त, एक एफओपीएल तभी सफल होता है, जब यह अनिवार्य होता है और एक वैज्ञानिक पोषक तत्‍व प्रोफाइल मॉडल द्वारा निर्देशित होता है। खाद्य और पेय पदार्थों के लिए सिंगल थ्रेशोल्‍ड न्‍यूट्रिएंट प्रोफाइल मॉडल एफओपीएल पॉलिसी को लागू करने और उसकी निगरानी करने के लिए सबसे प्रभावी समाधान है। मजबूत एफओपीएल नीतियों के साथ चिली, इजराइल और मैक्सिको जैसे देशों ने सिंगल न्‍यूट्रिएंट थ्रेशोल्‍ड के साथ मॉडल को अपनाया है।


 


तेजी से काम करने के महत्‍व और इन सीमाओं को तय करने की जानकारी देने वाले विज्ञान की अनदेखी न करने पर जोर देते हुए, डा. उमेश कपिल ने कहा, “दुनियाभर के विशेषज्ञों ने एनपीएम ढांचे को विकसित करने के लिए अनुसंधान और जमीनी स्‍तर पर अध्‍ययन किए हैं। डब्‍ल्‍यूएचओ के सीरो मॉडल को क्षेत्र में सदस्‍य देशों के परामर्श के साथ लागू किया गया और यह कोडेक्‍स एलिमेंटेरियस या फूड कोड के साथ बहुत अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। उद्योग डायवर्सनरी क्रियाकलापों का उपयोग करना जारी रखेगा। हमें वैज्ञानिक रूप से तय की गई एक स्‍वस्‍थ सीमा को अपनाने की आवश्‍यकता है और बातचीत पर अब और अधिक समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।”


 


कार्यक्रम में उपस्थित सभी विशेषज्ञों ने स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय को अपनी सिफारिशें भेजने पर सहमति व्‍यक्‍त की है और एक स्‍वस्‍थ और जवाबदेह खाद्य प्रणाली की दिशा में भारत सरकार के सथ काम करने की उम्‍मीद जताई है। उन्‍होंने कहा कि यह उत्‍साहजनक है कि एफएसएसएआई ने एफओपीएल से संबंधित परामर्श फिर से शुरू किया है। 


 


2018 में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने एफओपीएल के लिए मसौदा विनियमन जारी किया था, जिसे बाद में आगे के विचार-विमर्श के लिए वापस ले लिया गया। दिसंबर 2019 में, एफएसएसएआई ने एफओपीएल को जनरल लेबलिंग विनियमन से अलग कर दिया और वर्तमान में वह भारत के लिए एक व्‍यवहारिक मॉडल विकसित करने के लिए इस पर उपभोक्‍ता अधिकार संगठनों, उद्योग और पोषण विशेषज्ञों से उनके विचार एकत्रित कर रहा है।