9 अगस्त को अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन का हुआ आगाज - खबरीलाल


दिल्ली (अमन इंडिया)। अहो भाग्यशाली है हम और आप जिन्होने स्वतंत्र भारत में जन्म लिये है ' यह स्वर्णिम अवसर हमे अपने आजादी के दीवाने को जाता है जिन्होने अपनी जान की परवाह ना करते हुए हॅंसते हँसते फॉसी के फन्दे विना किसी गिले - सिकवे बलिदान की वेदी चढ गये थे । आज रविवार का दिन दिल्ली वाले के लिए अवकाश होता है लेकिन मुझे किसी आवश्यक कार्य हेतु दिल्ली जाना पड़ा है , ऐसे तो दिल्ली के व्यस्त सड़क व दिल्ली वासियो के व्यस्ततम जीवन में कुछ पल घुमने फिरने के नाम भी निकाल लेते है । उन लोगो के लिए आप विशेष कर आजादी के दीवाने के लिए है ' जो स्वतंत्र भारत के आजादी के स्वतंत्रता संग्राम मे रूचि रखते है।

आज भारत सरकार के संस्कृति पर्यटन विकास मंत्रालय के द्वारा दिल्ली के लुटियम जोन के जनपथ मार्ग स्थित राष्ट्रीय अ अभिलेखागार के सभागार मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी स्वर्णिम यादो से जुड़ी साम्रागी दो दिवसीय 8 - 9 अगस्त 21 को (प्रातः 10:00 से संध्या 5:30 ) भारत छोड़ो आन्दोलन प्रर्दशनी लगाया गया है। आज रविवार की सुबह भारत सरकार के तीन केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेगवाल ' मीनाक्षी लेखी व जी कृष्णन रेड्डी ने दीप प्रज्वलित शुभ शुभारम्भ किया ।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के स्वर्णिम पन्ने मेंअगस्त माह की अंहम भुमिका रही है। इस माह मे भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी दिलाने हेतु एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन की आगाज हुआ । सन 1939 में भारत के तत्कालीन वॉयस राय लार्ड लिनलिथोगो ने काँग्रेस व प्रान्तीय सरकार से विना परार्मश किये द्वितीय विश्वयुद्ध मे धकेल दिया । 17 अक्तुबर1940 को वर्धा के पास पौनार में विनोबा भावे के युद्ध विरोधी भाषण से गोरी सरकार को इस बात का एहसास हो गया कि भारत के समर्थन व सहयोग मिलना आवश्यक है। अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु अंग्रेजो ने 23 मार्च 1942 भारतीय नेताओ से वार्ता हेतु डोमिनियन स्टेसस (अधि राज्य ) व भविष्य क्रे संवैधानिक विकाश की योजना का मसौदा तैयार करने हेतु क्रिप्स मिशन को भारत भेजा था , लेकिन इस मिशन को भारत के आजादी के दीवाने व भारतीय नेताओ को समझाने मे असफल रहे । हमारे नेताओ ने अंग्रेजो से अन्तिम लडाई की तैयारी शुरू कर दी।इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। इसका आगाज महात्मा गांधी के द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद ९ अगस्त सन १९४२ को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था।बंगलुरू के बसवानगुडी में दीनबन्धु सी एफ् अन्ड्रूज का भाषण क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। परिणाम स्वरूप अंग्रेजी हुकमत ने गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था , लेकिन सम्पूर्ण देश के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधि गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रति सरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए तमाम छोटे-बड़े आंदोलन किए गए। अंग्रेजी सत्ता को भारत की जमीन से उखाड़ फेंकने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जो अंतिम लड़ाई लड़ी गई थी। इस लड़ाई में गांधी जी ने 'करो या मरो' का नारा देकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था। यही वजह है कि इसे 'अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन' या क्विट इंडिया मूवमेंट भी कहते हैं। इस आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 को हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं।

इस आंदोलन की शुरुआत मुंबई के एक पार्क से हुई थी जिसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया।जहाँ तक अगस्त क्रांति का इतिहास का सवाल है । वे इस प्रकार है कि 9 अगस्त 1942 को इस क्रांति का एलान किया गया जिसके कारण 9 अगस्त को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे का इतिहास है कि 4 जुलाई 1942 के दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया कि अगर अंग्रेज अब भारत नहीं छोड़ते हैं तो उनके खिलाफ देशव्यापी पैमाने पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाएगा।

हालांकि इस प्रस्ताव को लेकर भी पार्टी दो धड़ों में बंट गई। कांग्रेस के कुछ लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे। इसी की वजह से कांग्रेसी नेता चक्रवर्ती गोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी। यही नहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आजाद भी इस प्रस्ताव को लेकर पशोपेश में थे , लेकिन उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर इसका समर्थन करने का निर्णय लिया।वहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, अशोक मेहता और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं तक ने इस आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। लेकिन कांग्रेस पार्टी अन्य दलों जिसमें मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा को अपने साथ ला पाने में कामयाब न हो सकी। इन्होंने इस आंदोलन का विरोध किया।8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बम्बई अधिवेशन में 'भारत छोड़ो आंदोलन' यानी 'अगस्त क्रांति' का प्रस्ताव पारित किया था।