• 7 घंटे लंबी सफल सर्जरी में पहली बार भारत में उपयोग किया गया सबसे बड़ा 3डी प्रिंटेड लैटिस स्ट्रक्चर हिप ज्वाइंट
नई दिल्ली(अमन इंडिया)। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट़यूट, ग्ररुग्राम में ऑर्थोपेडिक्स टीम ने हाल ही में तंजानिया की 60 वर्षीया रोगी में सबसे बड़ा (भारत में) कस्टम-मेड 3डी प्रिंटेट हिप इम्प्लांट किया। इस तरह के कस्टमाइज़्ड इम्प्लांट (प्रत्यारोपण) की आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि पिछली तीन हिप सर्जरीज़ के कारण रोगी की पैल्विक बोन (कूल्हे की हड्डी) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। डॉ. सुभाष जांगिड़, निदेशक और यूनिट हेड, बोन एंड जॉइंट इंस्टीट्यूट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इस कठिन और चुनौतीपूर्ण सर्जरी को अंजाम दिया, जिसमें करीब 7 घंटे लगे।
तंजानिया की महिला हनीफा की पैल्विक बोन पिछली तीन हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के कारण गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई थी। इन तीन असफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी ने नए और आसानी से उपलब्ध हिप इम्प्लांट के लिए बोन सपोर्ट की गुंजाइश काफी कम कर दी थी। कृत्रिम हिप पैल्विस में ढीला पड़ा था और प्रत्यारोपण के आसपास की मांसपेशियों में लगातार चुभन के कारण दर्द हो रहा था जिससे रोगी आराम से सो भी नहीं पा रही थी। वह व्हीलचेयर पर निर्भर हो गईं थी और वॉकर के सहारे बमुश्किल वॉशरूम जा पाती थी। पैल्विक बोन को नुकसान होने के कारण उसका पैर 6 सेमी छोटा हो गया था। इसके अलावा, इन सर्जरीज़ में काफी पैसे खर्च होने से उसके पास पैसे भी नहीं बचे थे। सरकार से आवश्यक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के बाद, हनीफा ने फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में डॉ. जांगिड़ और उनकी टीम की चिकित्सकीय राय ली। विस्तृत परीक्षण और जांच के बाद, यह तय किया गया कि तीसरी बार लगाए गए उसके कृत्रिम हिप (हिप प्रोस्थेसिस) में सुधार के लिए कस्टम-मेड 3डी प्रिंटेड हिप इम्प्लांट की आवश्यकता है। उसके लिए बिना किसी सहारे के फिर से चलने और सामान्य जीवन जीने की यही एकमात्र उम्मीद बची थी।
डॉ. सुभाष जांगिड़, निदेशक और यूनिट हेड, बोन एंड जॉइंट इंस्टीट्यूट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा, ‘‘यह पहली बार है जब भारत में हिप सर्जरी के लिए इतने बड़े 3डी प्रिंटेड कस्टमाइज़्ड इम्प्लांट का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे मामले बहुत ही दुर्लभ और जटिल होते हैं। हमें अंगों को रक्त की आपूर्ति करने वाले महत्वपूर्ण नसों और तंत्रिकाओं का सावधानीपूर्वक विच्छेदन करना पड़ा क्योंकि वे पुराने कृत्रिम अंग के बहुत करीब थे और पिछली सर्जरी के चोटिल ऊतक से जुड़े हुए थे। इन महत्वपूर्ण संरचनाओं के किसी भी नुकसान के विनाशकारी परिणाम हो सकते थे, क्योंकि इससे अंग को लकवा मार सकता था या प्रमुख इंट्रा पैल्विक नसों से गंभीर रक्तस्राव जीवन के लिए खतरा बन सकता था। अंतत: हम रोगी के सभी महत्वपूर्ण वाहिकाओं, नसों और इंट्रा