मस्तिष्क के मध्य में स्थित इस घाव का आकार 3.8*3.6*3.4से.मी. था
मरीज़ शरीर के बाएं हिस्से में सीमित मोबिलिटी की समस्या से पीड़ित थी, सर्जरी में काफी जोखिम था और यह मरीज़ को हमेशा के लिए लकवाग्रस्त या वेजिटेटिव अवस्था में पहुंचा सकता थी
नई दिल्ली (अमन इंडिया): फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग के डॉक्टरों ने 33 वर्षीय एक मरीज़ की हाल में मिनीमॅली इन्वेसिव, कंप्यूटर गाइडेड सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। इस मरीज़ के मस्तिष्क के बीचों-बीच एक घाव बना हुआ था जिसकी वजह से बार-बार मरीज़ को छोटे-मोटे हेमरेज की समस्य पेश आती थी। ऐसे में सर्जरी का विकल्प काफी जोखिमपूर्ण था और कई तरह की जटिलताओं को पैदा कर सकता था। इस सर्जरी को डॉ सोनल गुप्ता, डायरेक्टर एवं हैड, न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग तथा उनकी टीम में शामिल अन्य डॉक्टरों ने 5 घंटे में पूरा किया।
मरीज़ के शरीर के बाएं हिस्से में मोबिलिटी सीमित थी। उन्हें बार-बार सिर दर्द की समस्या पेश आती थी और लगातार कमज़ोरी भी बढ़ रही थी। एमआरआई जांच में पता चला कि मस्तिष्क के मध्य भाग में एक घाव का पता चला। चिकित्सकीय जांच से यह भी पता चला कि मरीज़ को बार-बार होने वाले सिरदर्द का कारण मामूली रक्तस्राव थे। जब भी मरीज़ को रक्तस्राव होता तो इस घाव का आकार कुछ बढ़ जाया करता था और इसकी वजह से मस्तिष्क पर दबाव बढ़ने के साथ-साथ आसपास के ऊतकों को भी नुकसान पहुंच रहा था। यह घाव ऐसी जगह पर था कि इसकी सर्जरी करना जोखिमपूर्ण था और ऐसा करना मस्तिष्क के अति संवेदनशील भाग को नुकसान पहुंचा सकता था। यदि ऐसा होता तो मरीज़ न सिर्फ हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो सकती थीं बल्कि उनकी बोलने की क्षमता भी नष्ट होने या वेजीटेटिव/सेमी-कोमाटोज़ अवस्था में जाने की आशंका भी थी। इसके मद्देनज़र, मरीज़ और उनके परिजनों को सर्जरी से जुड़े गंभीर परिणामों के बारे में पूरी जानकारी दी गई और उनकी काउंसलिंग भी की गई थी, जिसके उपरांत उन्होंने सर्जरी का फैसला किया।
डॉ सोनल गुप्ता, डायरेक्टर एवं हैड, न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग ने कहा, ''हमने मिनीमॅली इन्वेसिव सर्जरी का विकल्प चुना ताकि हम स्थायी क्षति के जोखिम को कम से कम रख सकें। कंप्यूटरी गाइडेड सर्जरी ने हमें मस्तिष्क के घाव तक सीधे पहुंचने में मदद की अैर हम माइक्रोस्कोप की मदद से इसे निकालने में कामयाब रहे हैं। इसका एक बड़ा फायदा यह हुआ कि सर्जरी में इधर-उधर होने की ज़रा भी गुंजाइश नहीं बचीं क्योंकि ऐसा होने से मरीज़ हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो सकती थीं। सर्जरी से पहले मरीज़ की एमआरआई की गई थी और तस्वीरों को कंप्यूटर पर अपलोड किया गया। एडवांस न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम की मदद से, मरीज़ की खोपड़ी का कंप्यूटर एमआरआई से मेल कराया गया। इस नेवीगेशन की मदद से चीरा लगाने के बिंदु और घाव तक पहुंचने के एंगल को निर्धारित करने में मदद मिली। यह न्यूरो नेवीगेशनल सिस्टम सर्जरी के दौरान जीपीएस की तरह था और सर्जरी की सफलता में इसका बड़ा हाथ रहा है, खासतौर से पूरे मामले की जटिलता को ध्यान में रखते हुए यह महत्वपूर्ण था। ऑपरेशन के बाद स्वास्थ्यलाभ की प्रक्रिया स्मूद रही और मरीज़ को सर्जरी के बाद 5वें दिन अस्पताल से छुट्टी दी गई। अब तक दुनियाभर में ऐसे केवल पांच मामले सामने आए हैं और यह अब तक सबसे बड़ा घाव (3.8*3.6*3.4 cm) है।'' मरीज़ पिंकी शर्मा ने कहा, ''मेरा परिवार और मैं सर्जरी से जुड़े तमाम जोखिमों को जानने के बावजूद इसके लिए तैयार थे। हमें यह समझ में आ चुका था कि बार-बार हो रहे मामूली किस्म के रक्तस्रावों से मेरी तकलीफ बढ़ रही थी और कोई भी बड़ा रक्तस्राव तत्काल मौत का कारण बन सकता था। हमने डॉ सोनल गुप्ता पर भरोसा रखा और उन्होंने हमें सर्जरी से जुड़े जोखिमों के बारे में विस्तार से बताया। हमें पूरा विश्वास था कि हम सही जगह पहुंच चुके थे। मैं अब काफी बेहतर महसूस कर रही हूं और डॉ सोनल तथा उनकी टीम की आभारी हूं। उन्होंने मुझे नया जीवनदान दिया है।''
महिपाल भनोट, जोनल डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्टिपल शालीमार बाग ने कहा, ‘‘हमारा प्रयास हमेशा से ही सर्वोत्तम क्लीनिकल केयर उपलब्ध कराने का रहता है।