पोषण माह में पंचायत स्तर पर केंद्रित करना होगा ध्यान

 


 नई दिल्ली (अमन इंडिया)। केवल बच्चे नहीं बल्कि वयस्क और समस्त राष्ट्र के विकास में पोषण की अनिवार्य भूमिका पर जोर देते हुए देशव्यापी अभियान के तहत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2020 को राष्ट्रीय पोषण माह घोषित किया है। यह लोगों को आजीवन कुपोषण मुक्त रखने के विशेष अभियान कुपोषण-मुक्त भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। कुपोषण माह में पंचायत स्तर पर ध्यान केंद्रित करना मुख्य आकर्षण होगा। कुपोषण का जमीनी स्तर से समाधान के लिए भारत के पिछड़े क्षेत्रों में पोषण की समस्या की जड़ तक पहुँचना होगा। 


पोषण माह 2020 के तहत मुख्यतः अत्यधिक गंभीर कुपोषित (एसएएम) बच्चों की पहचान, निगरानी और उपचार प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित होगा। साथ ही पोषण वाटिका या न्युट्री गार्डन के प्रचार-प्रसार के लिए वृक्षारोपण अभियान होगा। अत्यअधिक गंभीर कुपोषण पीड़ित बच्चों (एसएएम) की मृत्यु का अधिक खतरा है यदि उन्हें दस्त, निमोनिया, मलेरिया आदि बीमारियां होती हैं। कोविड-19 की वजह से आंगनवाड़ी केंद्र (एडब्ल्यूसी) बंद होने से बच्चों के विकास पर निगरानी रखने और बढ़ावा देने की गतिविधियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में एसएएम बच्चों का पता लगाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को घर-घर जाना होगा। उनकी मांओं को ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी), स्वास्थ्य सुविधाओं और अस्पतालों, और पोशन एप्लिकेशन जैसे अन्य माध्यमों से भी जानकार और जागरूक बनाना होगा।


सुश्री रचना सुजय, सीनियर टेक्निकल एडवाइजर, अलाइव एंड थ्राइव, एफएचआई 360 के अनुसार, ‘‘किसी ग्राम पंचायत के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति सुधारने में सबसे पहला कदम सरपंच या मुखिया और पीआरआई सदस्य का होगा जो जमीनी स्तर की बड़ी आबादी के प्रति उत्तरदायी होंगे। निम्नलिखित चार कदम उठा कर वे ग्राम पंचायत की स्थिति सुधारेंगे और उन्हें ‘सुपोषित’ (अच्छी तरह  पोषित) बनाएंगे। डॉ. सुरभि जैन, मुख्य पोषण विशेषज्ञ और स्तनपान सलाहकार, न्यूट्रिवेल इंडिया, ने कहा, ‘‘शिशुओं के लिए मां का दूध वरदान है जो उन्हें संक्रमण और अन्य बीमारियों से बचाता है। शिशु मृत्यु दर कम करने और उनका वांछित विकास और वृद्धि सुनिश्चित करने में मां के उपयुक्त पोषण और शिशु को शुरू के छह महीने केवल मां का दूध देने के बाद पूरक पोषक आहार देने से मदद मिलती है। बच्चों के समग्र विकास में परिवार की बुज़ुर्ग महिलाएं और माताएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।