नई दिल्ली(अमन इंडिया): फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग के डॉक्टरों की टीम ने दिल की भल और जदटल जन्मजात बिमारी के साथ जन्मे एक महीने के बच्चे की जान बचाने के
सजलरी की। इस बिमारी को अनोमलस लेफ्ट कोरोनरी आटलरी फ्राम पल्मनेरी आटलरी (एएलसीएपीए)
कहा जाता है। डॉक्टरों की एक टीम द्वारा सजलरी ककए जाने से पहले2.5 ककलोग्राम वजन के साथ
जन्मे बच्चे की हालत गंभीर थी। इस टीम का नेतत्व सीटीवीएस के डायरेक्टर और प्रमुख डॉक्टर
र्दनेश कुमार और पीडीऐर्िक कार्डियोलोजी के सीननयर किं स्लटेंट डॉक्टर गौरव गगि ने ककया।
दिल से जुडे भल जन्मजात (सीएचडी) को ब्लैंड व्हाइट गारलैंड लसंड्रोम भी कहा जाता है। इस
लसंड्रोम मेंदिल की मांसपेलियों को रक्त पहुंचानेवाली कोरोनरी आटलरी एओटाल के जाय पुल्मनेरी
आटलरी से होती है और दिल की मांसपेलियों को रक्त की आपूर्तल करने वाली रक्त वादहका
अपनी सामान्य स्थथर्त में नहीं जुडी होती। फोदटलस विभाग के डॉक्टरों के सामने यह मामला
आने तक बिमारी की पहचान नहीं हुई थी। कई तरह के परीक्षणों और मूल्यांकन के डॉक्टरों
को पताचला कक बच्चा इस भल बिमारी से पीडडत था। सजलरी को सही तरह से करने के ललए
नवजात गहन चचककत्सा इकाई (एनआईसीय) में बच्चे की र्नगरानी के एक ववथततृ योजना
तैयार की गई। औसतन 3,00,000 बच्चों में से 1 को इस तरह की बिमारी होती है।
एक नवजात बच्चे पर की गई इस जदटल प्रकिया में बच्चे को काडडलयो पल्मोनरी
पर रखा गया। कोरोनरी आटलरी को पुल्मनेरी आटलरी से अलग करके एओटाल से जोडा गया। इस
उपचार के बच्चेके दिल नेअच्छी प्रर्तकिया दिखाई। ऑपरेिन के एक दिन के भीतर बच्चे को
वेंदटलेटर से हटा ललया गया। अथपताल में पोथट-ऑपरेदटव देखभाल के बच्चा जल् ही थवथथ
हो गया और उसे अथपताल से छुट्टी कि गई
मामले के में बताते हुए, डॉ दिनेश कुमार समत्तल ने कहा, “नवजात की सजलरी जदटल
होती हैक्योंकक अंग बहुत छोटे होते हैं। ऑपरेिन के हमारे ललए सिसे बडी चुनौती यह थी कक
बच्चे के दिल का बहुत कम था (ईएफ -20-25%) लेककन बच्चे का ररथ पॉन् स अच् छा रहा।
फोर्टिस शालीमार बाग मेंदल ने एएलसीएपीए ससिंड्रोम से बच्चे की जान बचाने के लिये की गई सजिरी