बालपन और किशोरावस्था के मोटापे में 50% की बढोत्तरी बन रही लडकियोँ में इन्फर्टिलिटी की वजह
· किशोर लडकियोँ में असामान्य बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के लिए कई जीवनशैली सम्बंधी कारक जिम्मेदार होते हैं, जैसे कि ऐसा आहार जिसमेँ कैलोरी तो बहुत अधिक होती है मगर पोषण की मात्रा कम होती है, समूह का दबाव और शारीरिक सक्रियता की कमी आदि।
· जो वयस्क महिलाएँ हमारे पास अनियमित पीरियड अथवा पीसीओडी की समस्या के साथ आती हैं उनमेँ किशोरावस्था में लगातार सामान्य से अधिक वजन का इतिहास पाया जाता है।
· डॉक्टर कहती हैं इनमेँ से अधिकतर महिलाएँ अपना वजन कम करके आसानी से गर्भवती हो सकती थीँ और सफलतापूर्वक बच्चे को जन्म दे सकती थीँ, मगर सभी मामलोँ में ऐसा सम्भव नहीं हो सका।
· अध्ययनोँ में एनर्जी मेटाबोलिज्म, न्युट्रीशनल स्टेट और रिप्रोडक्टिव फिजियोलॉजी एवम डिसॉर्डर अथवा पोषण की स्थिति में बदलाव (मोटापा, कुपोषण, एनोरेक्सिया नर्वोसा आदि) के साथ गहरा सम्बंध पाया गया है और मेटाबोलिज्म डिस्टर्बेंस उन जटिल हार्मोंस को प्रभावित करता है जो फर्टिलिटी के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं
गुडगाँव 17 जून 2019: सामान्य से अधिक वजन वाले बच्चोँ की संख्या में 50% की बढोत्तरी, खासकर लडकियोँ में जो किशोरावस्था और वयस्क आयु तक पहुंचने तक मोटापे की चपेट में आ जाती हैं, उनका वजन फर्टिलिटी की समस्या का कारण बन रहा है, जबकि मोटापे से बचाव पूरी तरह से सम्भव है। ऐसा कहना है कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल के डॉक्टरोँ का।
डॉक्टरोँ का मानना है कि किशोर लडकियोँ में असामान्य बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के लिए कई जीवनशैली सम्बंधी कारक जिम्मेदार होते हैं, जैसे कि ऐसा आहार जिसमेँ कैलोरी तो बहुत अधिक होती है मगर पोषण की मात्रा कम होती है, समूह का दबाव और शारीरिक सक्रियता की कमी आदि। यह स्थिति अक्सर पोलिसिस्टिक ओवरी डिजीज (पीसीओडी) अथवा स्टाइन-लेवेंथल सिंड्रोम जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओँ का कारण बनती है। इसके चलते ओवुलेशन सम्बंधी समस्याएँ (माहवारी साइकल के दौरान के ऊसाइट रिलीज नहीं होता है जिसकी वजह से माहवारी समय पर नहीं आती अथवा एम्नोरिया हो जाता है), और माहवारी सम्बंधी अन्य असामान्यताएँ, गर्भाधान की दर कम होना और फर्टिलिटी के इलाज पर देर से प्रतिक्रिया होना आदि।
कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल, गुडगांव की प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ. रितु सेठी कहती हैं, “6 से 12 साल के बीच की एक लडकी का वजन 20-40 किलोग्राम होना चाहिए और 12 से 17 साल के बीच यह 40 से 65 किलोग्राम के बीच होना चाहिए। इस आयु के बच्चोँ में कस्टमाइज्ड ग्रोथ चार्ट के अनुसार बॉडी मास इंडेक्स 85वाँ सेंटाइल होने का मतलब है ओवरवेट होना और 95वेँ सेंटाइल से अधिक होने का मतलब है मोटापा। जो वयस्क महिलाएँ हमारे पास अनियमित पीरियड अथवा पीसीओडी की समस्या के साथ आती हैं उनमेँ किशोरावस्था में लगातार सामान्य से अधिक वजन का इतिहास पाया जाता है। अधिकतर मोटी महिलाओँ में इंफर्टिलिटी की समस्या होती है और इनके लक्षणोँ का सम्बंध एंड्रोजन हार्मोन की अधिकता होती है जो पोलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) का परिणाम होता है। इनमेँ से अधिकतर महिलाएँ अपना वजन कम करके आसानी से गर्भवती हो सकती थीँ और सफलतापूर्वक बच्चे को जन्म दे सकती थीँ, मगर सभी मामलोँ में ऐसा सम्भव नहीं हो सका। ”
अध्ययनोँ में एनर्जी मेटाबोलिज्म, न्युट्रीशनल स्टेट और रिप्रोडक्टिव फिजियोलॉजी एवम डिसॉर्डर अथवा पोषण की स्थिति में बदलाव (मोटापा, कुपोषण, एनोरेक्सिया नर्वोसा आदि) के साथ गहरा सम्बंध पाया गया है और मेटाबोलिज्म डिस्टर्बेंस उन जटिल हार्मोंस को प्रभावित करता है जो फर्टिलिटी के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं जैसे को गोनाडॉट्रोपिंस और गोंडल।पहले किए गए अध्ययनोँ में देखा गया है कि कम उम्र में मोटापा प्युबर्टी की जल्द शुरुआत और हाइपोथेलमस, पिट्यूटरी ग्लैंड और ओवरी के जल्द मौच्योर होने की वजह भी बनता है; और ये सभी बदलाव मिलकर पीसीओएस को बढावा देते हैं।
डॉ. रितु सेठी कहती हैं, हर बात से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि मोटापा, खासकर पेट पर असामान्य मात्रा में फैट जमा होने से लडकियोँ के शरीर का प्राकृत्रिक फिजियोलॉजिकल मकेनिज्म प्रभावित होता है, जिसमेँ उनकी माँ बनने की इच्छा भी शामिल है। मोटापा जैसी रोकी जा सकने वाली समस्या का हमारी लडकियोँ के जीवन में इतना नुकसान पहुंचाने की हालत में पहुंच जाना एक बडी चिंता का विषय है। वजन कम करने से माहवारी के साइकल में सुधार, ओवुलेशन और फर्टिलिटी की समस्या में कमी हो सकती है और मोटापे से पीडित जिन लडकियोँ को इंफर्टिलिटी की समस्या है उन्हेँ सबसे पहले वजन कम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए: आमतौर पर, ऐसे मामलोँ में सिर्फ 3 से 5% वजन की कमी भी कारगर साबित होती है। वजन में कमी को बरकरार रखने का सबसे आसान तरीका है जीवनशैली में बदलाव, जिसमेँ नियंत्रित आहार, नियमित व्यायाम, कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी और एक सहायक ग्रुप वाला वातावरण उपलब्ध कराना।”
छोटी लडकियोँ और किशोरियोँ में मोटापे का प्रबंधन:
· आहार और खाने-पीने की आदतोँ में बदलाव लाना · व्यावहारिक बदलाव, तनाव में कमी और वेल बीइंग को बढावा देना · प्रभावी शारीरिक व्यायाम को दीर्घकाल के लिए अपनाना · 'क्रैश डाइट'और 'शॉर्ट टर्म'वेट लॉस से बचेँ · धूम्रपान रोकना और अल्कोहल का इस्तेमाल कम करना · ऐग्रेसिव सर्जिकल प्रक्रियाओँ से बचना · अपनी व्यक्तिगत जरूरतोँ के अनुसार वजन घटाने का प्रोग्राम अपनाना · डॉक्टर, परिवार, जीवनसाथी और समूह की ओर से सामाजिक सहयोग · जिन मरीजोँ ने सफलतापूर्वक अपना वजन घटाया है उनकी दीर्घकालिक निगरानी, मॉनिटरिंग और प्रोत्साहन
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